Book Title: Agam Suttani Satikam Part 29 Uttaradhyayanaani
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 277
________________ २७४ उत्तराध्ययन-मूलसूत्रम्-२-३६/१५७१ लब्धितश्च, यत उक्तम्-- "दुविहा खलु तसजीवा-लद्धितसा चेव गतितसा चेव"त्ति, ततश्च तेजोवाय्वोर्गतित उदाराणां च लब्धितोऽपि त्रसत्वमिति, उत्तरग्रन्थसम्बन्धनायाह-'तेषा'मिति तेज:प्रभृतीनां भेदान् श्रृणुत 'मे' मम कथयत इति सूत्रार्थ: ।। तत्र तावत्तेजोजीवानाहमू.(१५७२) दुविहा तेउजीवा उ, सुहमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेव दुहा पुनो। मू.(१५७३) बायरा जे उ पज्जत्ता, नेगहा ते वियाहिया। इंगाले मुम्मुरे अगनी, अच्चि जाला तहेव य॥ मू.(१५७४) उक्का विज्जू य बोद्धव्वा, नेगहा एवमायओ। एगविहमनाणत्ता, सुहुमा ते वियाहिया। मू.(१५७५) सुहुमा सव्वलोगंमि, लोगदेसे य बायरा। इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउव्विहं। मू.(१५७६) संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसियावि य। ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य॥ मू. (१५७७) तिनेव अहोरत्ता, उक्कोसेन वियाहिया। आउ ठिई तेऊणं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं ।। मू.(१५७८) असंखकालमुक्कोसा, अंतोमुहुत्त जहन्नयं। कायठिई तेऊणं, तं कायं तु अमुंचओ। मू.(१५७९) अनंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए, तेउजीवाण अंतरं।। मूः (१५८०) एएसिं वन्नओ चेव, गंधओ रसफासओ। सठाणादेसओ वावि, विहाणाइंसहस्ससो॥ वृ.दुविहेत्यादिसूत्राणि नव प्रायः प्राग्वत्, नवरम् अङ्गारः' विगतधूमज्वालो दह्यमानेन्धनात्मकः 'मुर्मुरः' भस्ममिश्राग्निकनरूपः ‘अग्निः' इहोक्तभेदातिरिक्तो वह्निः ‘अर्चिः' मूलप्रतिबद्धा ज्वलनशिखा, दीपशिखेत्यन्ये, 'ज्वाला' छिन्नमूला ज्वलनशिखैवेति सूत्रनवकार्थः ।। उक्तास्तेजोजीवाः, वायुजीवानाहमू.(१५८१) दुविहा वाउजीवा य, सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेव दुहा पुनो। मू.(१५८२) बायरा जे उपज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया। उक्कलियामंडलियाघनगुंजासुद्धवाया य॥ मू.(१५८३) संवट्टगवाए य, नेगहा एवमाअओ। एगविहमनाणत्ता, सुहमा तत्थ वियाहिया॥ मू.(१५८४) सुहमा सव्वलोगंमि, लोगदेसे य बायरा। इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउब्विहं।। मू.(१५८५) संतइं पप्पऽणाईया, अपज्जवसियावि य। For Private & Personal Use Only Jain Education International - www.jainelibrary.org

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