Book Title: Agam Suttani Satikam Part 29 Uttaradhyayanaani
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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उत्तराध्ययन-मूलसूत्रम्-२-३६/१५९५ मू.(१५९५) संतई पप्पा नाईया, अपज्जवसियावि य।
ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य॥ मू.(१५९६) वासाइं बारसेव उ, उक्कोसेन वियाहिया।
बेइंदियआउठिई, अंतोमुहत्तं जहन्नयं। मू.(१५९७) संखिज्जकालमुक्कोसा, अंतोमुहत्तं जहन्नयं।
बेइंदियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ। मू.(१५९८) अनंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्त जहन्नयं ।
बेइंदियजीवाणं, अंतरेयं वियाहियं ।। मू.(१५९९) एएसिं वनओ चेव, गंधओ रसफासओ।
संठाणादेसओ वावि, विहाणाइंसहस्ससो।। वृ. बेइंदिया इत्यादि सूत्रनवकम्, इदमपि प्रायस्तथैव, नवरं द्वीन्द्रियाभिलापः कर्त्तव्यः, तथा 'कृमयः' अशुच्यादिसम्भवाः 'अलसाः' प्रतीताः 'मातृवाहकाः' ये काष्ठशकलानि समोभयाग्रतया संबध्नन्ति, वास्याकारमुखा वासीभुखाः, 'सिप्पिय'त्ति प्राकृतत्वात् शुक्तयः 'शङ्खा:' प्रतीताः 'शङ्खनकाः' तदाकृतय एवात्यन्तलघवो जीवाः ‘वराटका:' कपर्दकाः 'जलौकसः' दुष्टरक्ताकर्षिण्यः चन्दनका-अक्षाः, शेषास्तु यथासम्प्रदायं वाच्याः, वर्षाणि द्वादशैवत्विति सूत्रनवकार्थः ।। त्रीन्द्रियवक्तव्यतामाहम.(१६००) तेइंदिया य जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया।
पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे।। मू. (१६०१) कुंथुपिवीलिउद्दसा, उक्कलुदेहिया तहा।
तणहारा कट्ठहारा य, मालूगा पत्तहारगा ।। मू.(१६०२)
कप्पासिद्धिमिजा य, तिंदुगा तउसर्मिजगा।
सदावरी य गुम्मी य, बोद्धव्वा इंदगाइ य॥ मू. (१६०३) इंदगोवसमाइया, नेगहा एवमायओ।
लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया। मू.(१६०४) संतइं पप्पऽणाईया, अपज्जवसियावि य।
ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य॥ मू. (१६०५) एगूनवन्न होरत्ता, उक्कोसेन वियाहिया।
तेइंदिय आउठिई, अंतोमुहत्तं जहन्नयं॥ मू.(१६०६) संखिज्जकालमुक्कोसा, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं।
तेइंदियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ। मू.(१६०७) अनंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं।
तेइंदियजीवाणं, अंतरेयं वियाहियं॥ मू. (१६०८) एएसिं वनओ चेव, गंधओ रसफासओ।
संगणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो॥
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