Book Title: Agam Suttani Satikam Part 13 Jambudwip pragnapati
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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४१८
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-उपाङ्गसूत्रम् ५/२४२ यिक्या-गंधकषायद्रव्यपरिकर्मितया लघुशाटिकयेति गम्यं, गात्राणि रूक्षयति, एवमुक्तप्रकारेण यावत्कल्पवृक्षमिवालङ्कृतं वस्त्रालङ्कारेण विभूषिकं आभरणालङ्कारेण करोति, यावत्करणात् लूहित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाइं अणुलिंपइ २ त्ता नासानीसासवायवोज्झं चक्खुहरं वण्णफरिसजुततं हयलालापेलवाइरेगधवलं कणगखचिअंतकम्मं देवदूसजुअलं निअंसावेइ २ त्ता' इति ग्राह्यं, अत्र व्याख्या प्राग्वत्, नवरं देवदूष्ययुगलं परिधानोत्तरीयरूपं निवासयतिपरिधापयतीतिकृत्वाचयावत्करणात् 'सुमिणदामंपिणद्धावेइ' इति ग्रा, नाटयविधिमुपदर्शयति उपदर्थ्यचअच्छैः श्लक्ष्णैः रजतमयैः अच्छरसतंडुलैः भगवतःस्वामिनःपुरतोऽष्ट अष्टमङ्गलकानि आलिखति, तद्यथा-दप्पणेति पद्यं सुगमं ।
मू. (२४३) लिहिऊण करेइ उवयारं, किंते ?, पाडलमल्लिअचंपगसोगपुन्नागचूअमंजरिणवमालिअबउलतिलयकणवीरकुंदकुजगकोरंटपत्तदमणगवरसुरमिगंधगंधिअस्स कयग्गहयगहिअकरयलपन्भट्ठविप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्सकुसुमणिअरस्स तत्थ चित्तंजण्णुस्सेहप्पमाणमित्तं ओहिनिकरंत करेत्ता चंदप्पभरयणवइवेरुलिअविमलदण्डं कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कघूवगंधुत्तमाणुविद्धं चघूमवदि विन्निम्मुअंतं वेरुलिअमयंकडुच्छुअं पग्गहित्तु पयएणं धूवं दाऊण जिनवरिंदस्स सत्तट्ट पयाइं ओसरित्ता दसंगुलिअंअंजलिं करिअ मत्थयंमिपयओ अट्ठसयविसुद्धगंथजुत्तेहिं महावित्तेहिं अपुणरुत्तेहिं अत्थजुत्तेहिं संथुणइ र त्ता वाणं जाणुं अंचेइ र त्ता जाव करयलपरिग्गहिअंमत्थए अंजलिं कट्ठ एवं वयासी
_ नमोऽत्यु ते सिद्धबुद्धनीरयसमणसामाहिअसमत्तसमजोगिसल्लगत्तणनिब्मय- . नीरागदोसणिम्ममणिस्संगणीसल्लमाणमूरणगुणरयणसीलसागरमणंतमप्पमेय भविअधम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीनमोऽत्युतेईसाणस्स भाणिअव्वं, एवंभवणवइवाणमंतरजोइसिआय सूरपज्जवसाणा सएणं परिवारेणं पत्तेअं २ अभिसिंचंति, तए णं से ईसाणे देविंदे देवराया पंच ईसाणे विउव्वइ २ ताएगेईसाणे भगवंतित्थयरंकरयलसंपुडेणंगिण्हइ २ तासीहासणवरगएपुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे एगे ईसाणे पिट्ठओ आयवत्तं धरेइ दुवे ईसाणा उभओ पासिं चामरुक्खेवं करेति एगे ईसाणे पुरओ सूलपाणी चिट्ठइ।
तएणंसे सक्केदेविंदे देवरायाआभिओगोदेवेसद्दावेइ र त्ताएसोवितह चेव अभिसेआणत्तिं देइ तेऽवि तह चेव उवणेति, तए णं से सक्के देविंदे देवराया भगवओ तित्थयरस्स चउद्दिसिं चत्तारिधवलवसमेविउव्वेइ सेए संखदलविमलनिम्मलदधिधनगोखीरफेणरयणिगरप्पगासे पासाईए दरसणिज्जे अभिरुवे पडिरूवे, तएणंतेसिंचउण्हं धवलवसभाणं अट्टहिं सिंगेहितो अट्ठ तोअधाओ निग्गच्छति । तएणंताओ अट्ठ तोअधाराओ उद्धं वेहासंउप्पयंति २ ता एगओ मिलायंति र त्ता भगवओ तित्थयर समुद्धाणंसि निवयंति। तएणं से सके देविंदे देवराया चउरासीईए सामानिअसाहस्सीहिं एअस्सवि तहेव अभिसेओ भाणिअब्बो जाव नमोऽत्थु ते अरहओत्ति कटु वंदइ नमंसइ जाव पज्जुवासइ।
वृ. मङ्गलालेखनोत्तरकृत्यमाह-लिहिऊण'त्ति, अनंतरोक्तांयष्टमङ्गलानि लिखित्वा करोत्युपचारमित्याद्यारभ्या कडुच्छुकग्रहणपर्यंतं सूत्रं चक्ररत्नपूजाधिकारलिखितव्याख्यातो
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