Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 13
________________ द्वितीयमथ यत्र चेद्गुरु षडष्टमं द्वादशं चतुर्दशमपीह पश्चदशमान्तिमं स्यात्तथा / ततः प्रकथिता क्षमामतिमुने ! सुबोधान्वितै:: जसो जसयला वसुप्रहयतिश्च पृथ्वी गुरुः // 46 // विबुध ! लघवः पञ्च प्राच्यास्ततो दशमान्तिक स्तदनुविहितौ हस्वौ चेद्यत्र वै त्रिचतुर्दशौ / प्रभवति पुनयंत्रोपान्त्यस्तथैव सुभाषिता ... रसयुगहयैन्सौ म्रौ स्लो गो यदा हरिणी तदा // 50 // आद्याश्चेद्गुरवस्त्रयस्तदनु चेत्षष्ठस्तथा चाष्टमः स्यादेकादशतस्त्रयः खलु तथैवाष्टादशाद्यौ ततः / स्यादेवं ननु चान्तिमो भवति तच्छन्दोऽमृते चेन्मुने ! . सूर्याश्वैर्मसजाः स्तताः सगुरवः शार्दूलविक्रीडितम् / / 5 / / चत्वारो यत्र वर्णाः प्रथममलघवः पश्चमान्त्यौ तथैव दौ तद्वत्षोडशाद्यौ यदि गुरुतनुको षोडशान्त्यौ तथान्त्यौ / विद्ववृन्दैः सदा साऽन्वयगगनमणे ! सेविता सुप्रसिद्धा प्रौ भनौ यानां त्रयेण त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम् / / 52 / / , पूर्वग्रन्थानुसारेण, छन्दोऽमृतरसो मुदा।। छन्दोगणसुबोधार्य संक्षेपतः प्रकीर्तितः // 53 // अमृतसूरिशिष्येण जिनेन्द्रविजयेन यः / रसभूखद्रिके वर्षे गुम्फितो जामपट्टने // 4 // वेदान्ताचार्यवर्येण व्रजलालेन शोधितः / / जीयाकाव्यमतीनेष प्रददानो . मुदं सदा // 55 // - शिवमस्तु सर्वजगतः -

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