Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् : श्रुतस्कंधः 2 चू० 2 अध्ययनं 1 ] [113 // 2H सप्तसप्तिका-द्वितीया चूला // // 1: स्थान-अध्ययनं 1 // से भिक्खू वा (2) अभिकंखेजा ठाणं ठाइत्तए, से अणुपविसिज्जा गाम वा जाव रायहाणिं वा, से जं पुण ठाणं जाणिज्जा—सअंडं जाव समकडासंताणयं तं तहप्पगारं ठाणं अफासुयं अणेसणिज्जं लाभे संते नो पडिगाहिज्जा, एवं सिज्जागमेण नेयवं जाव उदयपसूयाई ति 1 // इच्चेयाइं श्रायतणाई उवाइकम्म (2) ग्रह भिक्खू इच्छिज्जा चाहिं पडिमाहिं ठाणं ठाइत्तए, तत्थिमा पढमा पडिमा॥ अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा अवलंबिज्जा कारण विप्परिकम्माइ (म्मिज्जा) सवियारं ठाणं ठाइस्सामि, पढमा पडिमा / ग्रहावरा दुच्चा पडिमा अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा अवलंबिज्जा कारण विप्परिकम्माइ नो सवियारं ठाणं ठाइस्सामित्ति, दुचा पडिमा। ग्रहावरा तच्चा पडिमा- अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा अवलंबिज्जा नो कारण विपरिकम्माइ नो सवियारं ठाणं ठाइस्सामित्ति, तचा पडिमा। अहावरा चउत्था पडिमा अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा अवलंबिज्जा नो कारण नो परकमाइ नो सवियारं ठाणां ठाइस्सामित्ति वोसट्टकाए वोस?केसमंसुलोमनहे संनिरुद्धं वा ठाणं ठाइस्मामित्ति, चउत्था पडिमा / इच्चेयासिं चउराह पडिमाण जाव पग्गहियतरायं विहरिज्जा, नो किंचिवि वइज्जा 2 / एयं खलु तस्स भिक्खुस्स जाव जइज्जासि तिबेमि 3 ॥सू० 163 // ठाणसत्तिकयं सम्मत्तं॥ // इति प्रथममध्ययनम् // 2 श्रु०-२ चू०-१.अ. आदितः८ //

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