Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 132
________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 चू० 2 अध्ययनं 3 ] [116 पट्टणसंनिवेसाणि वा अन्नयराइं तहप्पगाराई सद्दाई नो अभिधारेजा गमणाए 3 // से भिक्खू वा (2) अहावेगइयाई सदाई सुणेइ, तंजहा-बारामाणि वा उजाणाणि वा वणाणि वा वणसंडाणि वा देवकुलाणि वा सभाणि वा पवाणि वा अन्नयराइं तहप्पगाराई सदाइं नो अभिसंधारेजा गमणाए // से भिक्खू वा (2) ग्रहावेगइयाइं सहाई सुोइ, तंजहा-अट्टाणि वा अट्टालयाणि वा चरियाणि वा दाराणि वा गोपुराणि वा अन्नयराई तहप्प. गाराई सदाइं नो अभिसंधारिजा गमगाए 5 // से भिक्खू वा (2) ग्रहावेगझ्याइ सदाइं सुणेइ, तंजहा-तियाणि वा चउक्काणि वा चच्चराणि वा चउम्मुहागण वा अन्नयराइं तहप्पगाराई सदाई नो अभिसंधारिजा गमणाए 6 // से भिक्खू वा (2) ब्रह्मवेगइयाइं सदाई सुोड, तंजहा-महिसकरणट्ठाणाणि वा वसमकरणट्ठाणाणि वा अस्सकरणट्ठाणाणि वा जाव कविजलकरणट्टाणाणि वा अन्नयराई तह पगाराई नो अभिसंधारिजा गमणाए 7 // से भिक्खू वा (2) यहा वगइयाई सदाई सुणेइ तंजहा-महिसजुद्धाणि वा जाव कविंजलजुद्धाणि वा अन्नयराई तहप्पगाराई सदाइं नो अभिसंधारिजा गमणाए 8 // से भिवखू वा (2) ग्रहावेगड्याई सदाइं सुगाइ तंजहा-पूवहियठाणाणि वा हयजहियठाणाणि वा गयजूहियठाणाणि वा यन्नयराइं तहप्पगाराई नो अभिसंधारिजा गमणाए 1 ॥सू. 169 // से भिक्खू वा (2) जाव सुणेइ, तंजहा--अक्खाइयठाणाणि वा माणुम्माणियट्ठागाणि वा महताऽऽहयनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तलताल-तुडिय-पडुप्पवाइयट्टाणाणि वा अन्नयराई वा तहप्पगाराई सदाइं नो अभिसंधारेजा गमगाए / से भिवरखू वा (2) जाव सुणेइ, तंजहा—कलहाणि वा डिंबाणि वा डमराणि वा दोरजाणि / वरजाणि वा विरुद्धरजाणि यन्नवराई वा तहप्पगाराई सदाई नो अभिसंधारेजा गमणाए 2 // से भिक्खू वा (2) जाव सुणेइ, खुड्डियं दारियं परिभूत्तमंडियं अलंकियं निवुज्भमाणि पेहाए एग वा पुरिसं वहाए नीणिज.

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