Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 12
________________ द्वितीयतुर्यनवममक्षरं गुरु, भवेत्तथैव च दशमान्त्यमन्तिमम् / ' सुभाषिता विबुधगणैः प्रभावती ... जभौ सजौ गिति रुचिरा चतुर्ग्रहः // 42 // तुर्य पञ्चममपि षष्ठसप्तमं वै स्याद्धस्वं खलु नवमं च रुद्रसंख्यम्। अन्यत्स्याद् गुरु यदि गीयते तदा सा . म्नौ जौगस्त्रिदशयतिः प्रहर्षिणीयम् // 43 // तुर्याद्यतुर्यपरषष्ठकसप्तमं वै ___स्याद् हस्वकश्च नवमं दशमं तथैव / चेद् द्वादशं भवति यत्र सुकाव्यविज्ञै रुक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः // 44 // प्रथममगुरुषट्कं यत्र चैकादशाचं ___ भवति लघु तथा चेदक्षरं द्वादशान्त्यम् / सुकविजनमनोज्ञा सा सुचारु प्रसिद्धा ननमयययुतेयं मालिनी भौगिलोकैः // 4 // चत्वारो यत्र वर्णा आद्यास्तथा पञ्चमान्त्या ___श्चत्वारो यत्र वर्णा दीर्घास्तथा चेदिशोन्त्यौ। .. द्वावेवं यत्र . वर्णावत्यौ तथा स्यात्सुवर्णा नौ म्यौ यान्तौ भवेतां सप्ताष्टकैश्चन्द्रलेखा // 46 // चत्वारः प्राविहितगुरवो ये दिगेकादशौ चे द्वी दीक़ तदनु भवतः शोभनौ द्वादशान्त्यौ / तद्वच्चान्त्यौ सुगुरुतनुको वर्णिता सुप्रसिद्धा मन्दाक्रान्ता मभनततगा गः समुद्रतु लोकैः।।४७|| यदा पूर्वो हस्वः प्रभवति ततः षष्ठकपरा स्ततो वर्णाः पञ्च प्रकुशल ! तथैवात्र लघवः / त्रयोऽन्ये चोपान्त्याः प्रवरकविभिई सुभणिता रसै रुद्वैच्छिन्ना यमनसभला गः शिखरिणी // 48 //

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