Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्री आचागङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 8 ] [35 संकमित्तु गाहावई यायगयाए पेहाए असणं वा (4) वत्थं वा (1) जाव थाह१ चेएइ पावसहं वा समुस्सिणाइ भिक्खू परिघासउं,तं च भिक्खू जाणिजा महसम्मइयाए परवागरणेणं अन्नेसि वा सुच्चा अयं खलु गाहावई मम अट्टाए असणं वा (4) वत्थं वा (4) जाव पावसहं वा समुस्सिणाइ, तं च भिवम्बू पडिलेहाए ग्रागमित्ता आणविजा यणासेवणाए ति बेमि ॥सू० 203 / / भिक्खु च खलु पुट्ठा वा अपुट्ठा वा जे इमे ग्राहच गंथा वा फुसंति, से हंता हणह खणह छिदह दहह पयह धालु पह विलुपह सहसाकारेह विष्णरामुसह, ते फासे धीरो पुट्ठो अहियासए अदुवा अायारगोयरमाइक्खे, तकिया णमणेलिसं अदुवा वइगुत्तीए गोयरस्स अणुपुब्वेण संमं पडिलेहाए अायतगुत्ते बुद्धेहिं एयं पवेइयं ॥सू० 201 // से समणुन्ने असमणुन्नस्स असणं वां जाव नो पाइजा नो निमंतिजा नो कुजा वेयावडियं परं यादायमाणे ति बेमि ॥सू० 205 // धम्ममायाणह पवेइयं माहणेण मइमया समणुन्ने समणुनस्स असणं वा जाव कुजा वेयावडियं परं पाढायमाणे त्ति बेमि ॥सू० 206 // // इति द्वितीय उद्देशकः // 8-2 // . // अध्ययनं-८ : उद्देशकः-३ // मज्झिमेणं वयसावि एगे संबुज्झमाणा समुट्ठिया, सुचा मेहावी वयणं पंडियाणं निसामिया समियाए धम्मे पारिएहिं पवेइए ते अणवकंखमाणा अणइवाएमाणा अपरिग्गहेमाणा नो परिग्गहावंती सव्वावंती च णं लोगंसि निहाय दंडं पाणेहिं पावं कम्मं अकुञ्चमाणे एस महं अगंथे वियाहिए श्रोए जुइमस्स खेयन्ने उववायं चवणं च नचा ॥सू० 207 // याहारोवचया देहा परीसहपभंगुरा पासह एगे सबिदिएहिं परिगिलायमाणेहिं ॥सू० 208 // ओए दयं दयइ, जे संनिहाणसत्थस्स खेयन्ने से भिक्खू कालन्ने बलन्ने मायन्ने खणन्ने विणवन्ने समयन्ने परिग्गहं अममायमाणे कालेणुढाई

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