Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 38] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // अध्ययन-८ : उद्देशकः-६ // जे भिक्खू एगेण वत्थेण परिसिए पायबिईएण, तस्स णं नो एवं भवइ-विईयं वत्थं जाइस्सामि, से अहेसणिज्ज वत्थं जाइज्जा ग्रहापरिग्गहियं वत्थं धारिज्जा जाब गिम्हे पडिवन्ने ग्रहापरिजुन्नं वत्थं परिदृविज्जा (2) अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले लाघवियं बागममाणे जाव सम्मत्तमेव समभिजाणिया ॥सू० 218 // जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ-एगे अहमसि, न मे अस्थि कोइ, न याहमवि कस्सवि, एवं से एगागिणमेव अप्पाणं ममभिजाणिज्जा, लाघवियं अागममाणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ जाव समभिजाणिया ॥सू० 216 // से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा (4) थाहारेमाणे नो वामाश्रो हणुयायो दाहिणं हणुयं संचारिज्जा श्रासाएमाणे, दाहिणायो वाम हणुयं नो संचारिज्जा आसाएमाणे (पाढायमाणे) से अणासायमाणे लापवियं यागममाणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ, जमेयं भगवया पवेइयं तमेवं अभिसमिच्चा सव्वश्रो सव्वत्ताए सम्मत्तमेव अ(सम)भिजाणिया ।सू० २२०॥जस्स णं भिवखुस्स एवं भवइ-से गिलामि च खलु यहं इमंमि समये इमं सरीरगं अणुपुब्वेण परिवहित्तए, से अणुपुब्वेणं याहारं संवट्टिज्जा, अणुपुव्वेणं याहारं संवट्टित्ता कसाए पयणुए किचा समाहियच्चे फलगावयट्ठी उट्ठाय भिक्खू अभिनिवुडच्चें ॥सू. 221 // अणुपविसित्ता गाम वा नगरं वा खेडं वा कब्बडं वा मडंबं वा पट्टणां वा दोणमुहं वा श्रागरं वा यासमं वा सन्निवेसंवा नेगमं वा रायहाणिं वा तणाई जाइज्जा तणाई जाइत्ता से तमायाए एगंतमवक्कमिज्जा, एगंतमवक्कमित्ता अप्पंडे अप्पपाणे अप्पबीए अप्पहरिए अप्पोसे अप्पोदए अप्पुत्तिंगपणगदगमट्टियमक्कडासंताणए पडिलेहिय (2) पमज्जिय (2) तणाई संथरिज्जा, तणाई संथरित्ता इत्थवि समए इत्तरियं कुज्जा, तं सच्चं सच्चवाई श्रोए तिन्ने छिन्नकहकहे आईय? अणाईए चिच्चाण भेउरं कायं संविहूय विरू

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