Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 110 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः 8 // एयं खलु जाव सया जएज्जासि त्ति बेमि १॥॥सू० 158 // || इति प्रथमोद्देशकः // 2-1-7-1 // // अध्ययनं-७ : उद्देशकः-२॥ से श्रागंतारेसु वा (4) अणुवीइ उग्गहं जाइज्जा, जे तत्थ इसरे समाहिट्ठाए ते उग्गहं अणुन्नविज्जा काम खलु पाउसो ! श्रहालंदं अहापरिन्नायं वसामो जाव थाउसो ! जाव अाउसंतस्स उग्गहे जाव साह म्मिश्राए ताव उग्गहं उग्गिरिहस्सामो तेण परं विहरिस्सामो // से किं पुण तत्थ उग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा दंडए वा छत्तए वा जाव चम्मछेदणए वा तं नो अंतोहितो बाहिं नीणिज्जा बहियायो वा नो अंतो पविसिज्जा, सुत्तं वा नो पडिबोहिज्जा, नो तेसिं किंचिवि अप्पत्तियं पडिणीयं करिज्जा // सू० 151 // से भिक्खू वा (2) अभिकंखिजा अंबवणं उवागच्छित्तए जे तत्थ इसरे जे तत्थ समाहिट्ठाए, ते उग्गहं अणुजाणाविजा-कामं खलु जाव विहरिस्सामो, से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि ग्रह भिवखू इच्छिज्जा यं भुत्तए वा से जं पुण अंचं जाणिजा सग्रंडं ससंताणं तहप्पगारं ग्रंवं अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्जा 1 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण ग्रंवं जाणिजा अप्पंडं अप्पसंताणगं अतिरिच्छछिन्नं वोच्छिन्नं अफासुयं जाव नो पडिगाहिजा 2 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण अंबं जाणिज्जा, अप्पंड वा जाव संताणगं तिरिच्छछिन्नं छिन्नं फासुयं पडिगाहिजा 3 // से भिक्खू वा (2) अभिकंखिजा, अंबभित्तगं वा अंबपेसियं वा अंबचोयगं वा अंबसालगं वा अंबडालगं वा भुत्तए वा पायए वा, से जं पुण जाणिज्जा अंबभित्तगं वा (5) सयंडं ससंताणं अफासुयं जाव नो पडिगाहिजा // से भिक्खू वा (2) से जं पुण जाणिज्जा अंबं वा अंबभित्तगं वा अप्पंडं जाव

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