Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 121
________________ 108 ] - [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः णीए वा सामग्गिय जं सवठेहिं सहिए सया जए जासि तिबेमि 4 // ॥सू. 154 // // इति द्वितीयोद्देशकः / / 2- 1.6-2 / / इति षष्ठमध्ययनम् // 2--1.-6 / / : // 7: अवग्रहप्रतिमा-अध्ययनं 7 :: उद्देशकः 1 // समणे भविस्सामि अणगारे यकिंचणे अपुरे अपसू परदत्तभोइ पावं कम्मं नो करिस्सामिोत्ते समुट्ठाए सव्वं भंते ? अदिन्नादाणं पञ्चक्खामि, से अणुपविसित्ता गामं वा जाव रायहाणिं वा नेव सयं अदिन्नं गिरिहज्जा नेवऽन्नेहिं अदिन्नं गिराहाविजा अदिन्नं गिराहतेवि अन्ने न समणुजाणिजा, जेहिंवि सद्धिं संपव्वइए तेसिपि जाइं छत्तगं वा जाव चम्मछेयणगं वा तेसिं पुवामेव उग्गहं अणणुन्नविय अपडिलेहिय (2) अपमजिय (2) नो उग्गिरिहजा वा परिगिरिहज वा, तेसिं पुत्वामेव उग्गहं जाइजा अणुन्नविय पडिलेहिय पमजिय तो संजयामेव उग्गिरिहज वा परिगिरिहज वा ॥सू० 155 // से यागंतारेसु वा (4) अणुवीइउग्गहं जाइजा, जे तत्थ इसरे जे तत्थसमहिए ते उग्गहं अणुन्नविजा-कामं खलु पाउसो० ? ग्रहालंदं यहापरिन्नायं वसामो जाव अाउसो ? जाव ग्राउसंतस्स उग्गहे जाव साहम्मियाए ताव उग्गहं उग्गिरिहस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो 1 // से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि जे तत्थ साहम्मिया संभोइया समगुन्ना उवागच्छिज्जा जे तेण सयमेसित्तए असणे वा (4) तेण ते साहम्मिया (3) उवनिमंतिज्जा, नो चेव गां परवडियाए योगिझिय (2) उवनिमंतिजा 2 ॥सू० 156 // से पागंतारेसु वा (4) जाव से किं पुण तत्योग्गहंसि एवोग्गहियंसि जे तत्थ साहम्मिया अन्नसंभोइया समगुन्ना उवागच्छिजा जे तेण सयमेसित्तए पीढे वा फलए वा सिन्जा वा संथारए वा तेण ते साहम्मिए अन्नसंभोइए समणुन्ने उवनिमंतिजा नो चेव णं परवडियाए भोगिझिय उवनिमंतिज्जा 1 // से आगंतारेसु वा (4) जाव से किं पुण

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