Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 62
________________ वा 2 46 समारम्भ जाव मागे से जं पुण जाव चेण्इ त तपारभुत्तं श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 46 साहम्मिणी बहवे साहम्मिणीयो समुद्दिस्स चत्तारि घालावगा भाणियव्वा ॥सू० 6 // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा 4 बहवे समण-माहण-यतिहि-किवणवणीमए पगणिय 2 समुद्दिस्स पागाइं वा 4 समारब्भ जाव नो पडिग्गाहिज्जा ॥सू० 7 // से भिक्खू वा भिक्षुणी वा जाव पविठे समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा 4 हवे समण-माहण-अतिहि-किवणवणीमए समुद्दिस्स जाव चेएइ तं तहप्पगारं असणं वा (4) अपुरिसंतरकडं वा अबहियानीहडं अणत्तट्ठियं अपरिभुत्तं गासेवियं अफासुयं अणेसणिज्जं जाव नो पडिग्गाहिज्जा१ ग्रह पुण एवं जाणिज्जा पुरिसंतरकडं बहियानीहडं अत्तट्टियं परिभुत्तं ग्रासेवियं फा सुयं एमणिज्जं जाव पडिगाहिज्जा ॥सू० 8 // से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं पिंडवाय-पडियाए पविसिउकामे से जाइं पुण कुलाई जाणिज्जा-इमेसु खलु कुलेसु निइए पिंडे दिज्जइ अग्गपिंडे दिज्जइ नियए भाए दिज्जइ नियए अबडभाए दिज्जइ, तहप्पगाराइं कुलाई निइयाई निइउमाणाई नो भत्ताए वा पाणाए वा पविसिज्ज वा निवखमिज्जं वा 1 // एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जए ति बेमि २॥सू. 6 // // इति प्रथमोद्देशकः / / श्रु० २-चू० १-अ० 1 उ०.१ / / // अध्ययन-१ : उद्देशकः-२ // से भिक्खू वा भिवखुणी वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविठ्ठे समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा (1) पट्टमिपोसहिएसु वा अद्धमासिएसु वा मासिएसु वा दोमासिएसु वा तेमासिएसु वा चाउम्मासिएसु वा पंचमासिएसु वा छम्मासिएसु वा उऊसु वा उउसंधीसु वा उउपरियट्टेस वा बहवे समणमाहणयतिहिकिवणवणीमगे एगायो उक्खायो परिएसिज्जमाणे पेहाए दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए तिहिं उक्खाहिं परिए

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