Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 57 से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण जाणिजा समणं वा माहणं वा गामपिंडोलगं अतिहिं वा पुयपविट्ठ पेहाए नो तेसिं संलोए सपडिदुवारे चिट्ठिज्जा, (केवली ब्रूया-पायाणमेयं पुरा पेहाए तस्सट्टाए परो असणं वा 4 ग्राहटटु दलइज्जा, ग्रह भिक्षुणं पुव्वोवइटुं एस पइन्ना एस उवएसो जं नो तेसिं संलोए सपडिदुवारे चिट्ठिज्जा) से तमायाय एगंतमवक्कमिज्जा (2) अणावायमसंलोए चिट्ठिज्जा 1 / से से परो अणावायमसंलोए चिट्ठमाणस्स असणं वा (4) ग्राहट्ट दलइज्जा, से य एवं वइज्जा अाउसंतो समणा इमे भे असणे वा (4) सब्बजणाए निसट्ठे तं भुजह वा णं परिभाएह वा णं, तं गइयो पडिगाहित्ता तुसिणीयो उहिज्जा, अवियाई एयं मममेव सिया, माइट्ठाणं सफासे नो एवं करिज्जा 2 / से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा (2) से पुब्बामेव आलोइज्जा-याउसंतो समणा ! इमे भे असणे वा (4) सब्बजणाए निसिढे तं भुजह वा णं जाव परिभाएह वा णं, सेणमेवं वयंत परो वइज्जाअाउसंतो समणा ! तुमं चेव णां परिभाएहि से तत्थ परिभाएमाणे नो अप्पणो खद्धं (2) डायं (2) ऊसदं (2) रसियं (2) मणुन्नं (2) निद्धं (2) लुक्खं (2) से तत्थ अमुच्छिए अगिद्धे अग(ना)ढिए अणझोववन्ने बहुसमममेव परिभाइज्जा 3 / से गां परिभाएमाणां परो वइज्जा-अाउसंतो समणा, मा गां तुमं परिभाएहि सब्वे वेगइया ठिया उ भुक्खामो वा 4 पाहामो वा / से तत्थ भुजमाणे नो अप्पणा खद्धं खद्धं जाव लुक्खं, से तत्थ अमुच्छिए (4) बहुसममेव भुजिजा वा पाइजा वा 5 ॥सू. 26 // से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण जाणिज्जा समणं वा माहणं वा गामपिंडोलगं वा अतिहिं वा पुवपविट्ठं पेहाए नो ते उवाइकम्मं पविसिज वा श्रोभासिज्ज वा, से तमायाय एगंतमवकमिजा (2) अणावायमसंलोए चिट्ठिजा, ग्रह पुणेवं जाणिज्जा-पडिसेहिए वा दिन्ने वा तयो तमि नियत्तिए संजयामेव पवि

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154