Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 110
________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंध 2 अध्ययनं 4] [ 67 सुकडेत्ति वा सुळुकडे इ वा साहुकडे इ वा कल्लाणे इ वा करणिज्जे इ वा, एयप्पगारं भासं सावज्जं जाध नो भासिज्जा 1 // से भिक्खू वा (2), असणां वा (4) उववखडियं पेहाय एवं वइजा, तंजहा-प्रारंभकडेत्ति वा सावजकडेत्ति वा पयत्तकडे इ वा, भद्दयं भद्दति वा ऊसढं उसढे इ वा, रसियं (2), मणुन्नं (2), एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासिज्जा 2 // ॥सू. 137 // से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा गोणं वा महिसं वा मिगं वा पसुवा पक्खिं वा सरीसि वा जलचरं वा से तं परिवूढकायं पेहाए नो एवं वइज्जा--थूले इ वा पमेइले इ वा वट्टे इ वा वझे इ वा पाइमे इ वा, एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव नो भासिज्जा 1 // से भिवखू वा भिक्खुणी वा माणुस्सं वा जाव जलयरं वा सेत्तं परिवूटकायं पेहाए एवं वइज्जा--परिवूढकाएत्ति वा उवचियकाएत्ति वा थिरसंघयणेत्ति वा चियमंससोणिएत्ति वा बहुपडिपुन्नइंदिइए-त्ति वा, श्यप्पगारं भासं असावजं जाव भासिज्जा 2 // से भिवस्खू वा (2) विरूवरूवायो गायो पेहाए नो एवं वइज्जा, तंजहा---गायो दुज्मायोत्ति वा दम्मेत्ति वा गोरहत्ति वा वाहमत्ति वा रहजोग्गत्ति वा, एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव नो भासिज्जा 3 // से भिखू वा (2) विरूवरूवायो गायो पेहाए एवं वइज्जा, तंजहा---जुवंगवित्ति वा घेणुत्ति वा रसवइत्ति वा हस्से इ वा महल्ले इ वा महव्वए इ वा संवहणित्ति वा, एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभिकख भासिज्जा 4 // से भिक्खू वा (2) तहेव गंतुमुज्जाणाई पव्वयाई वणाणि वा रुक्खा महल्ले पेहाए नो एवं वइज्जा, तंजहा---पासायजोग्गात्ति वा तोरणजोग्गाइ वा गिहजोगाइ वा फलिहजोग्गाइ वा अग्गलग्गिाइ वा नावाजोग्गाइ वा उदगजोग्गाइ वा दोणजोग्गाइ वा पीढ-चंगबेर-नंगलकुलिय-जंतलट्ठी-नाभि(लि)गंडीपासणजोग्गाइ वा सयणजाणउवस्सयजोगाई वा, एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव नो भासिज्जा 5 // से भिक्खू वा (2) तहेव गंतुमुज्जाणाई

Loading...

Page Navigation
1 ... 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154