Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 112
________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 5 ] [66 // 5 // वस्त्रैषणा-अध्ययनं-५ :: उद्देशकः-१॥ से भिक्खू वा (2) अभिकखिजा वत्थं एसित्तए, से जं पुण वत्थं जाणिजा, तं जहा जंगियं वा भंगियं वा साणियं वा पोत्तगं वा, खोमियं वा तूलकडं वा, तहप्पगारंवत्थं वा जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायक थिरसंघयणे से एगंवत्थं धारिजा नो बीयं, जा निग्गंथि सा चत्तारिसंघाडीयो धारिजा, एगं दुहत्थवित्थारं दो तिहत्यवित्थाराश्रो एगं चउहत्थवित्थारं, तहप्पगारेहिं वत्थेहिं असंधिजमाणेहि, ग्रह पच्छा एगमेगं संसिविजा ॥सू० 141 // से भिक्खु वा (2) परं पद्धजोयणमेराए वत्थपडियाए नो अभिसंधारिज गमणाए ॥सू० १४२॥से भिक्खू वा (2) से जं पुण वत्थं जाणिजा, अस्सिं. पडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई जहा पिंडेसणाए भाणियवं // एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणिं बहवे साहम्मिणीयो बहवे समणमाहणा तहेव पुरिसंतरकडा जहा पिंडेसणाए / सू० 143 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण वत्थं जाणिजा, असंजए भिक्खुपडियाए कीयं वा धोयं वा रत्तं वा घट्ट वा मट्ठ वा संपधूमियं वा तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं जाव नो पडिग्गाहिज्जा, अह पुण एवं जाणिजा, पुरिसंतरकडं जाव पडिगाहिजा.॥सू० 144 // से भिक्खू वा (2) से जाईपुण वत्थाई जाणिजा विरुवरूवाई महद्भणमुल्लाई, तंजहा-ग्राइणगाणि वा सहिणाणि वा सहिणकल्लाणाणि वा ग्रायाणि वा कायाणि वा खोमियाणि वा दुगुल्लाणि वा पट्टाणि वा मलयाणि वा पन्नुन्नाणि वा अंसुयाणि वा चीणंसुयाणि वा देसरागाणि वा अमिलाणि वागजफलाणि वा फालियाणि वा कोयवाणि वा कंबलगाणि वा पावराणि वा अन्जयराणि वा तहप्पगाराई वस्थाई महद्धण-मुल्लाई लाभे संते नो पडिगाहिजा 1 // से भिवखू वा (2) थाइराणपाउरणाणि वत्थाणि जाणिजा, तंजहा-उद्दाणि वा पेसाणि वा पेसलाणि वा किराहमिगाइणगाणि वा नीलमिगाईणगाणि वा गोरमि

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