Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 89
________________ 76 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः उवल्लियइ, श्रावयइ वा नो वा श्रावयइ, वयइ वा नो वा वयइ, तेण हडं यन्नेण हडं तस्स हडं यन्नस्स हडं अयं तेणे अयं उवचरए अयं हंता ग्रयं इत्थमकासी, तं तवरिसं भिवखु अतेणं तेणंति संकइ, अह भिक्खूणं पुब्बोवइट्टा जाव नो ठाणं वा (2) चेइज्जा ॥सू. 75 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा तणपुजेसु वा पलालपुंजेसु वा सग्रंडे जाव ससंताणए तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा (3) चेइज्जा 1 ।से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवरसयं जाणिज्जा, तणपुंजेसु वा पलालपुजेसु वा अप्पंडे जाव चेइज्जा २॥सू० 76 // से यागंतारेसु वा बारामागारेसु वा गाहावइकुलेसु. वा परियावसहेसु वा अभिवखणं 2 साहम्मिएहिं उवयमाणेहिं नो उवइज्जा ॥सू० 77 // से आगंतारेसु वा (4) जे भयंतारो उडु(उ)बद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवाइणित्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो संवसंति, अयमाउसो ! कालाइक्कंतकिरियावि भवति 1 ॥॥सू० ७८॥से यागंतारेसु वा (4) जे भयंतारो उड(उ)वद्धियं वासावासियं वा कप्पं उवाइणावित्ता तं दुगुणा दु(ति)गुणेण वा अपरिहरित्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो संवसंति अयमाउसो : उवट्ठाणकिरिया यावि भवति 2 ॥सू० 76 // इह खलु पाइणं वा पडीणं वा दाहिणं वा उदीणां वा संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा-गाहापई वा जाव कम्मकरीयो वा, तेसिं च णं अायारगोयरे नो सुनिसते भवइ, तं सदहमाणेहिं पत्तियमाणेहिं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहि-किवणवणीमए समुद्दिस्स तत्थ तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेइयाइं भवंति, तंजहा–याएसणाणि वा अायतणाणि वा देवकुलाणि वा सहायो वा पवाणि वा पणियगिहाणि वा पणियसालायो वा जाणगिहाणि वा जाणसालायो वा सुहाकम्मंताणि वा दब्भकम्मंताणि वा वद्धकंमंताणि वा वकयकम्ताणि वा वणकम्मंताणिवा इंगालकम्मंताणि वा कट्टकम्मंताणि सुसाणकम्मंताणि वा सुराणागार-गिरिकंदर-संतिसेलोवट्ठाण-कम्मंताणि वा भवणगिहाणि वा, जे भयंतारो

Loading...

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154