________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 3 ] [ 19 // अध्ययनं-३ : उद्देशकः-४ // से वंता कोहं च माणं च मायं च लोभं च, एयं पासगस्स देसणं, उवरयसत्यस पलियंतकरस्स, अायाणं सगडभि ॥सू. 121 // जे एगं जाणइ से सवं जाणइ. जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ ॥सू. 122 // सव्वयो एमत्तस्स भयं, सव्वयो अपमत्तस्स नस्थि भयं, जे एगं नामे से बहुं नामे, जे बहुं नामे से एगं नामे; दुवखं लोगस्स जाणित्ता वंता लोगस्स संजोगं जंति धीरा महाजाणं, परेण परं अंति, नावखंति जीवियं ॥सू. 123 // एगं विगिंचमाणे पुढो विगिचइ, पुढोवि, सड्डी प्राणाए मेहादी लोगं च गाए अभिसमिच्चा अकुयोभयं, अत्थि सत्थं परेण परं, नथि यू.सत्यं परेण परं ॥सू० 124 // जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायादंसी, जे मायादंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पिज्जदंसी, जे पिज्ज सी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी, जे मोहदंसी से गम्भदेसी, जे गम्भदंसी से जम्मदंसी, जे जम्मदंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से नरय दंसी, जे नरयदंसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी / से मेहावी भिणिवट्टिज्जा, कोहं च माणं च मायं च लोमं च पिज्जं च दोसं च मोहं * च गन्मं च जम्मं च मारं च नरयं च तिरियं च दुक्खं च, एयं पासगरम दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स, बायाणं निसिद्धा सगडन्भि, किमाथ योबाही पासगस्स ? न विज्झइ ? नत्थि त्ति बेमि ॥सू० 125 // // इनि चतुर्थ उद्देशकः // 3-4 / / इति तृतीयमध्ययनम् // 3 // // 4 : सम्यक्त्वाध्ययन-४ : उद्देशकः-१ // से बेमि जे अईया, जे य पडुपन्ना, आगमिस्सा अरहंता भगवंतो, ते सब्वे एवमाइक्खन्ति, एवं भासंति, एवं पराणविंति, एवं परूविंति-सब्वे पाणा सब्वे भूया सव्वे जीवा सब्वे सत्ता न हंतव्वा, न अज्जावेयव्वा, न परिधि