Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ 24 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // अध्ययन-५ : उद्देशकः-२ // यावन्ती केयावन्ती लोए अणारंभजीविणो तेसु, एत्थोवरए तं झोसमाणे, अयं संधीति अवखू, जे इमस्स विग्गहस्स अयं खणे ति अन्नेती एस मग्गे ग्रारिएहिं पवेइए, उठ्ठिए नो पमायए, जाणित्तुं दुक्खं पत्तेयं सायं, पुढोछंदा इह माणवा पुढो दुक्खं पवेइयं, से अविहिंसमाणे अणवयमाणे, पुट्ठो फासे विपणुन्नए ॥सू. 146 // एस समिया परियाए वियाहिए, जे असत्ता पावेहिं कम्मेहिं उदाहु ते पायंका फुसंति, इति उदाहु धीरे ते फासे पुट्ठो अहियासइ, से पुब्बिंपेयं पच्छापेयं भेउरधम्म, विद्धंसणधम्ममधुवं, अणिइयं, असासयं चयावचइयं, विप्परिणामधम्म, पासह चेयं स्वसंधि ॥सू. 147 // समुप्पेहमाणस्स इकाययणरयस्स इह विष्पमुकस्स नत्थि मग्गे विरयस्स ति बेमि ॥सू. 148 // श्रावंती केयावंती लोगंसि परिग्गहावंती, से अप्पं वा बहुं वा अणुवा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा एएसु चेव परिग्गहावंती, एतदेव एगेसि महब्भयं भवइ, लोगवित्तं चणं उवेहाए, एए संगे अवियाणयो ॥सू. १४६॥से सुपडिबद्धं सूवणीयंति नचा पुरिसा परमचक्खू विपरिकमा, एएसु चेव बंभचेरं त्ति बेमि, से सुयं च मे. अज्झत्थयं च मे, बंधपमुक्खो अज्झत्थेव, इत्थ विरए यणगारे दीहरायं तितिक्खए. पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्तो परिव्वए, एयं मोणं सम्मं अणुवासिज्जासि ति बेमि ॥सू० 150 // // इति द्वितीय उद्देशकः // 5--2 / / // अध्ययन-५ उद्देशकः-३ // - यावंती केयावंती लोयंसि अपरिग्गहावंती, एएसु चेव अपरिग्गहावंती. सुच्चा वइ मेहावी पंडियाण निसामिया समियाए धम्मे पारिएहिं पवेइए जहित्थ मए संधी झोसिए, एवमन्नत्थ संधी दुज्जोसए भवइ, तम्हा बेमि नो निहणिज्ज वीरियं ॥सू० 151 // जे पुटवुट्टाइ नो पच्छानिवाइ,

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154