Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 11
________________ यदायं चतुर्थ तथा सप्तमं चेत्, तथैवाक्षरं इस्वमेकादशाधम् / भुजङ्गप्रयातं भवेद्यैश्चतुर्भि ___ यदुक्तं कवीन्द्रजिनेन्द्रादिभक्तैः // 3 / / अपि सनिप्रिय ! यत्र चतुर्थक गुरु च सप्तमकं दशमं तथा विरतिगं च तथैव विशेषविद् द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ // 36 // द्वितीयकपश्चमकाष्टमकञ्च तथा दशमान्त्यगतं गुरु यत्र / चतुर्जगणं यदि मौक्तिकदाम ____ वदन्ति बुधा विगतेन्द्रियदोष // 7 // आधतुर्यान्त्यकं ह्यष्टमेकादशं हस्वमेवं नियुक्तं भवेच्छन्दसि / विश्ववात्सल्यदेवाधिदेवार्चक ! रेश्चतुभिर्मता. कोविदः स्रग्विणी // 38 // मायं द्वितीयमथ तुर्यमष्टमं, चैकादशाद्यपरके तथैव चेद् / दीर्घ सुकाव्यकुशलैर्मनोहरा धीरैरभाणि ललिता तभी जरौ // 36 // करतलगतधर्मरत्नसाधो! विगलितमोहगजेन्द्रमोक्षयात्रिन् / भवति जगति नौ ततः परौ यौँ नजसहित रंगैश्च पुष्पिताग्रा // 4 // सत्तीयपश्चमसुवर्णकं तथा नवमं यथा दशमकान्त्यकान्त्यकम् / गुरुकं सुभाषितमभूद्धि नन्दिनी सजसा जगौ भवति मजुभाषिणी // 4 //

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