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विषय मोर प्रश्नादि
कहना,
ग्रह दो है, एवं इदय चौरिदीय में इद्रिय घठाय க் चौरिंदीय को व्यञ्जनावग्रह तीन अर्धाग्रह चार है, शेष जैसे नारकी को कहा से वैमानिक तक ४४५ और भाव भेद से दो तरह की इद्रिय है, द्रष्य माठ दष्ये द्रिय २ कान २ नेत्र २ नाक जीम स्पर्श ८, नारकी को माठी है, एष असुर वैमानिक स्तनितकुमार तक । पृथिवी यावत् काय द्रव्ये १ स्पर्श यावद्वनस्पति पर्यत । द्वी न्द्रिय को द्रव्ये स्पर्श 9 जिह्वा २ दो है, रिट्री को दो नाक जीम और स्पर्श ए ४ हैं । चौरी को द्रष्य दो नेत्र दो नाक जीम ५
स्पर्श ए ६ हैं। शेष को जैसे नारकी को कहा | ४४६
पत्राक
विषय और प्रनादि
| एकेक नारकी के मनता द्रष्येंद्रिय छातीत है । ध आठ है । पुरस्कृत ८ । १६ । १७ । सख्यात असख्यात और अनत मी होते हैं ४४७ एकेक छासुरकुमार के कितने द्रव्ये द्रिय प्रतीत छानत । बरु ८ । पुरस्कृत ८ । ९ । सख्यात प्रख्यात छानत । एव स्तनितकुमार तक ४४७ वनस्पतिकाय एव पृथिवीकाय काय कहा, को एक स्पर्श द्रष्येद्रिय है तेजो वायु भी ऐसे ही है मेद यह के पुरस्कृत ९ । १० है, एष द्वीन्द्रिय भी मेद यह के यह दो है, श्रीन्द्रिय को चार, धौरिन्द्री को बरु ६ है, पचेन्द्रिय तिर्यच मनुष्य वानव्यन्तर जो तिषी सौधर्म ईसान देव जैसे छासुरकुमार, भेद |
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पत्राक