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विपय और प्रश्नादि
पत्राक
फर्क क्रियामे है | ४९२
मनुष्य सर्व समाहार है इत्यादि जैसे नारकी नंद क्रिपा से तीन भेद है ४९३ | ४९४
घानष्यन्सर जैसे सुरकुमार एव जोतिपी वैमानिक जी नेद यह के वेदना से विविध है ४९५ जैसे योषिक गमा कहा तेसे सलेश्य का गमा कहना वैमानिक पर्यन्त पृधिषीष्ठ वनस्पति पर्चेद्रिय तिर्यच मनुष्य जैसे यौधिक गमा कहा नंद मनुष्य को क्रिया में प्रम मठ का ४९७
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किंवनी लेश्या ब
४९६ |
विषय मोर प्रश्नावि
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भूया, तिर्यच योनिक को न लेन्या, एकेंद्रिय को चार लेया ४९८ पृथिवीकाय को घार छेनूया, ठ्प वनस्पति जी नही है, तेजो वायु द्वीद्रिय श्रीद्रिय चतुरि द्रिय जैसे नारकी, पचेद्रिय तिर्यच को ब, समू र्बिम पचेंद्रिय तिर्येच जैसे नारकी, गर्भज पचें द्रिय तिर्यच को ब एवं लेवूया वक्तष्यताधिकार १९९ गर्भजमनुष्य की ब, देव को छ, देवियों को चार, एवं जयनवासि देव देवी धानव्यन्सर देव देवी वैमानिक देवदेवाधिकारे ५० यह जीव सलेशी कलशी यावत् शुक्कलेगा' में पोमा घणा इत्यादि ष्णुरूप बहुत्व वक्तष्यता उद्देश समाप्ति तक ५०१
पत्राक
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