Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar SamitiPage 18
________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० १ क्षुल्लहिमवद्ववर्षधरपर्वतनिरूपणम् ५ च प्रत्येकं 'पुरथिमपच्चस्थिमेणं' पौरस्त्यपश्चिमे-पूर्वपश्चिमयोः 'पंच' पञ्च-पञ्चसंख्यानि 'जोयणसहस्साई' योजनसहस्राणि 'तिण्णि य' त्रीणि च 'पण्णासे जोयणसए' योजनशतानि पञ्चाशदिति पञ्चाशदधिकानि 'पण्णरस य' पञ्चदश च 'एगूणवीसइभाए जोयणस्स' योजनस्य एकोनविंशतिभागान् 'अद्धभागं च' अर्द्धभागम्-एकस्य योजनैकोनविंशतितमभागस्याई च 'आयामेणं' आयामेन-दैर्येण प्रज्ञप्ते, स्थापना यथा-५३५०७३ । अस्य व्याख्यानं चतुर्दशसूत्रगत चैताढयाधिकारे द्रष्टव्यम् । एतत्सूत्रस्य तत्सूत्रप्रायत्वात् । अथास्य जीवामाह'तस्स जीवा' इत्यादि, 'तस्स' तस्य-क्षुद्रहिमवतः 'जीवा जीवा-धनुर्ध्या सेव जीवा धनु ावत्प्रदेशः 'उत्तरेणं उत्तरे-उत्तरस्यां दिशि गता 'पाईण पडिणायया प्राचीन प्रतीचीनाऽऽयता पूर्वपश्चिमदीर्घा, पुनः सा कीदृशी ? इत्यपेक्षायामाह-'जाव' यावत्-यावत्पदेन 'पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा' इति ग्राह्यम् । एतच्छाया-'पौरस्त्यया कोटया पौरस्त्यं लवणसमुद्रं स्पृष्टा' एतद्विवरणं स्पष्टम् , 'पच्च. थिमिल्लाए कोडीए' पाश्चात्यया कोटया 'पञ्चथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा' पाश्चात्यं लवणसमुद्रं स्पृष्टा, 'चउव्वीसं' चतुर्विंशतिः-चतुर्विशति संख्यानि 'जोयणसहस्साई' योजनसहस्राणि च पुनः 'णव य' नव-नवसंख्यानि 'बत्तीसे जोयणसए' योजनशतानि द्वात्रिशदिति द्वात्रिशदधिकानि 'अद्धभाग' अर्द्धभागम् एकस्य योजनैकोनविंशति भागस्याद च किंचिविसेसणा' किश्चिय पण्णासे जोयणसए पण्णरसय एगूणबीसइभाए जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं) इसकी पूर्व पश्चिम की दोनों भुजाएं लम्बाई में ५३५० योजन को हैं, तथा १ योजन के १९ भागो में १५: भाग प्रमाण है इसका व्याख्यान वैताढयाधिकार के सूत्र से जान लेना चाहिये (तस्स जीवा उत्तरेणं पाईण पडोणायया जाव पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चस्थिमिल्लं लवणसमुदं पुट्टा चउच्वीसं जोयणसहस्साई णचय वत्तीसे जोयणसए अद्धभागं च किंचिविसेखूणा आयामेणं पण्णत्ता) इस क्षुद्र हिमवत्पर्वत की उत्तरदिशागत जीवा-धनुष की ज्या के जैसा प्रदेश-पूर्व से पश्चिम तक लम्बी है यावत् वह अपनी पूर्वदिग्गत कोटी से पूर्व लवण समुद्र को पश्चिमदिग्गतकोटि से पश्चिमलवणसमुद्र को छू रहा है पंच जोयणसहस्साइं तिण्णिय पण्णासे जोयणसए पण्णरस य एगूणबीसइभाए जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं' थे ५तनी पूर्व पश्चिमनी भन्ने सुनो। मा ५३५० જન જેટલી છે તેમજ એક જનના ૧૯ ભાગોમાં ૧૫ ભાગ પ્રમાણ છે. એ मनुव्याच्या वैतायाधिz।२ना सूत्रमाथी angla . 'तस्स जीवा उत्तरेणं पाईण पडीणायया जाव पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चस्थिमिल्लं लवणसमुदं पुट्टा चउब्बीसं जोयणसहस्साई णवय बत्तीसे जोयणसए अद्धभागं च किंचिविसेसूणा आयामेगं पण्णत्ता' मा क्षुद्र भवान् ५६तनी उत्तर दिशात 1-धनुषनी प्रत्ययाना प्रदेश પૂર્વથી પશ્ચિમ સુધી લાંબા છે, યાવત તે પિતાની પૂર્વ દિગ્ગત કોટિથી પૂર્વ લવણ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રPage Navigation
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