Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 16
________________ प्रकाशिका टीका - चतुर्थवक्षस्कारः सू० १ क्षुल्लहिमवद्ववर्षधरपर्वतनिरूपणम् ३ नाह - 'गोयमा !' हे गौतम ! ' हेमवयस्स वासस्स दाहिणेणं' हैमवतस्य वर्षस्य क्षेत्रस्य दक्षिणे दक्षिणस्यां दिशि 'भरहस्स' भरतस्य तन्नामकस्य ' वासस्स उत्तरेणं' वर्षस्य उत्तरे उत्तरस्यां दिशि 'पुरत्थिमलवणसमुहस्स' पौरस्त्यलवणसमुद्रस्य पूर्वलवणसमुद्रस्य 'पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवण समुहस्स' पाश्चात्ये पश्चिमदिशि, पाश्चात्यलवण समुद्रस्य-पश्चिमलवण समुद्रस्य 'पुरथिमेणं' पौरस्त्ये- पूर्वस्यां दिशि 'एत्थ णं' अत्र इह खलु 'जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंते णामं वासहरपव्वर पण्णत्ते' जम्बूद्वीपे द्वीपे क्षुद्र हिमवान् नाम वर्षधरपर्वतः प्रज्ञप्तः, स च कीदृश: ? इत्यपेक्षायामाह - ' पाईण पडीणायए' प्राचीनप्रतीचीनाऽऽयतः प्राचीनप्रतीचीनयोः पूर्वपश्चिमयोः आयतः दीर्घः पुनः 'उदीणदाहिण वित्थिन्ने' उदोचीन दक्षिणविस्तीर्णः - उदीचीन - दक्षिणयोः उत्तर दक्षिणयोः विस्तीर्णः विस्तारयुक्तः 'दुहा' द्विधाः द्वाभ्यामनुपदं वक्ष्यमाणाभ्यां कोटिभ्यां 'लवणसमुद्दे पुट्ठे' लवणसमुद्रं स्पृष्टः आश्लिष्टः स्पृष्ट इत्यत्र कर्तरि क्त प्रत्ययः, एतदेव स्पष्टीकरोति 'पुरत्थिमिल्लाए' पौरस्त्यया पूर्वस्या 'कोडीए' कोटयाअग्रभागेन 'पुनत्थिमिल्लं' पौरस्त्यं पूर्व 'लवणसमुदं पुट्ठे' लवणसमुद्रं स्पृष्टः 'पच्चत्थिमिल्लाए' पाश्चात्यया पश्चिमया 'कोडीए' कोटया 'पच्चत्थिमिल्लं' पाश्चात्यं - पश्चिमं 'लवणसमुद्दे पुढे' द्वीप में क्षुद्रहिमवान् नामका वर्षधर पर्वत कहां पर कहा गया है ? इसे वर्षधर इसलिये कहा गया है कि यह अपने पास में रहे हुए दो क्षेत्रों की सीमा को करता है इसके उत्तर में प्रभु कहते है - ( गोयमा ! हेमवयस्स वासस्स दाहिणे णं भरहस्स वासस्स उत्तरेणं पुरत्थिम लवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं एत्थणं जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंते णामं वासहरपच्चए पण्णत्ते) हे गौतम! इस जम्बूद्वीप में स्थित क्षुद्रहिमवान् पर्वत भरत क्षेत्र की उत्तर दिशा में और हैमवत् क्षेत्र की दक्षिणादिशा में, तथा पूर्वदिग्वर्ती लवण समुद्र की पश्चिमदिशा में एवं पश्चिमदिग्वर्ती लवणसमुद्र की पूर्व दिशा में कहा गया है । (पाईणपडीणायए, उदीणदाहिणविस्थिपणे दुहा लवणसमुदं पुट्ठे पुरस्थि मिल्लाए कोडी पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठे पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्च દ્વીપમાં ક્ષુદ્ર હિમવાન નામક વધર પર્યંત ક્યાં આવેલ છે? એ પવ તને વધર એટલા માટે કહેવામાં આવેલ છે કે એ પેાતાની પાસેના એ ક્ષેત્રાની સીમાનું નિર્ધારણ કરે છે. भेना नवामभां प्रलु उडे छे - 'गोयमा ! हेमवयस्स वासस्स दाहिणेणं भरहस्स वासस्स उत्तरेणं पुरत्थमलवण समुदस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुहस्स पुरत्थिमेणं एत्थणं जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते' हे गौतम! या स्मृद्वीपमां स्थित क्षुद्र હિમવાન પર્યંત ભરતક્ષેત્રની ઉત્તર દિશામાં અને હૈમવત ક્ષેત્રની દક્ષિણ દિશામાં તથા પૂ દિગ્વતી` લવણ સમુદ્રની પશ્ચિમ દિશામાં તેમજ પશ્ચિમ દિગ્વતી લવણસમુદ્રની પૂર્વ દિશામાં भावे छे. 'पाईणपडीणायए उदीण दाहिण वित्थिष्णे दुहा लवणसमुद्दे पुढे पुरथिमिल्लाए कोडी पुरथिमिल्लं लवणसमुद्दे पुढे पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दे पुट्ठे' જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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