Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar Publisher: Padma PrakashanPage 13
________________ यह तो सुनिश्चित है कि चित्र से गंभीर से गंभीर विषय भी बड़ी सहजता के साथ समझ में आ सकता है । चित्र अरूप को स्वरूप प्रदान करता है । दुर्बोध को सुबोध बनाता है । एक चित्र हजारों श्लोकों से भी अधिक प्रभावशाली बन जाता है । कुल मिलाकर आज की शिक्षा पद्धति में चित्रों की उपयोगिता और आवश्यकता बढ़ती ही जा रही है । आगमों का चित्रमय प्रकाशन यद्यपि बहुत महँगा पड़ता है । चित्रों के निर्माण में परम्परा एवं आगम की मर्यादा का भी ध्यान रखा जाता है तथा चित्र निर्माण से लेकर रंगीन मुद्रण तक की समूची विधि बहुत ही खर्चीली होती है । इस कारण आगमों का सचित्र संस्करण साधारण संस्करण से बहुत अधिक महँगा पड़ जाता है । सामान्य पाठक उसे खरीदने में असमर्थता भी अनुभव करता है । इन सभी कठिनाइयों का समाधान भी हो सकता है और इस पर समाज चिन्तन भी कर रहा है । फिर भी सचित्र प्रकाशन और वह भी हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद के साथ अन्य प्रकाशनों से अधिक दर्शनीय, पठनीय एवं भव्य होता है, यह निस्सन्देह माना जायेगा । सचित्र आगम प्रकाशन की मेरी भावना को मूर्तरूप दिया है साहित्यकार प्रबुद्ध चिन्तक श्रीचन्द जीं सुराना ने । उनकी पूज्य गुरुदेव के प्रति भक्ति तथा आगमों के प्रति श्रद्धा और चित्रमय साहित्य प्रकाशन के प्रति अनुराग / लगाव तथा अनुभव सब मिलाकर इस कार्य को सुगम और गतिशील बना सका है । कुछ समय पूर्व हमने सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र का प्रकाशन किया था, अब श्री अन्तकृद्दशा सूत्र चित्रमय प्रस्तुत है । इस प्रकार सभी के सहयोग से सचित्र आगम प्रकाशन माल का यह द्वितीय ग्रंथरत्न ' सचित्र अन्तकृद्दशा सूत्र' पाठकों के कर-कमलों में समर्पित है । मुझे विश्वास है इस प्रयत्न से देश व विदेश स्थित जैन बन्धुओं में आगम स्वाध्याय के प्रति रुचि बढ़ेगी और वे आत्म-कल्याण के मार्ग पर अग्रसर होंगे, इसी शुभ आशा के साथ तपाचार्या श्री उपप्रवर्तिनी श्री मोहनमाला जी म. तथा श्रमणी सूर्या उपप्रवर्तिनी डॉ. श्री सरिता जी म. के सराहनीय सहयोग के लिए मैं किन शब्दों में धन्यवाद करूँ। मेरी आशा के अनुरूप श्री अन्तकृद्दशासूत्र का यह संस्करण पाठकों एवं स्वाध्यायियों ने बहुत पसन्द किया, कुछ ही समय में इसका प्रथम संस्करण समाप्त हो गया । द्वितीय संस्करण की माँग आ रही थी इसलिए अब यह द्वितीय संस्करण पाठकों के हाथों प्रस्तुत है। श्री सुयश मुनि जी लिखित अन्तकृद्दशा महिमा भी श्री सुरेन्द्र बोथरा के अंग्रेजी अनुवाद के साथ सम्मिलित कर दी गई है। में - अमर मुनि पद्मजयन्ती (दशहरा) जैन स्थानक गांधी मंडी, पानीपत Jain Education International फ्र १३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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