Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 12
________________ २. भोगों से विरक्त होकर त्याग वृत्ति की प्रेरणा देता है-वासुदेव श्रीकृष्ण की आठ पटगनियों का संयम ग्रहण । ३. गजसुकुमाल मुनि का उज्ज्वल चरित्र धैर्य, दृढ़ता, कष्ट-सहिष्णुता और परम तितिक्षा भाव का पाठ पढ़ाता है। ४. सुदर्शन श्रावक का चरित्र, अपने आराध्य देव के प्रति परम समर्पण भाव, आत्म-विश्वास और धर्मतेज का सूचन करता है । ५. अर्जुनमाली का मुनि जीवन-अद्भुत सहन-शक्ति और उपशम भाव की आराधना की ओर इंगित करता है। ६. महाराज श्रेणिक की काली आदि रानियों की तपश्चर्या का वर्णन शरीर-ममत्व से मुक्त होकर "तवसा धुणाइ पाव कम्म" का आदर्श उपस्थित करता है । ७. वाल-मुनि अतिमुक्तकुमार का रोचक वर्णन-जीवन में सरलता, भद्रता और विनयपूर्वक प्रश्नोत्तर शैली का सुन्दर संकेत करता है । इस प्रकार प्रस्तुत आगम अनेक प्रकार के जीवन्त आदर्शों को उपस्थित करके निर्वाण की समुज्ज्वल साधना करने का मार्ग प्रशस्त करता है । इसका पठन-श्रवण जीवन में सभी के लिए कल्याणकारी हैं । प्रस्तुत सम्पादन आज जैन समाज में अन्तकृद्दशा सूत्र का वाचन/पठन भी सबसे अधिक होता है और इस आगम का प्रकाशन भी अनेक संस्थाओं द्वारा अनेक रूपों में हुआ है । इस पर विस्तृत टीकाएँ और व्याख्याएँ भी प्रकाशित हुई हैं तो कहीं-कहीं से मूल पाठ, भावानुवाद और कहीं से सिर्फ मूल पाठ ही । इस प्रकार छोटे-बड़े अनेकों संस्करण प्रकाशित हुए हैं । सभी की अपनी उपयोगिता है । हिन्दी भाषा के अतिरिक्त गुजराती भाषा में अनेक सुन्दर संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं । अंग्रेजी में भी श्री मोदी का प्रकाशित संस्करण मेरे देखने में आया है । पाठक पूछेगे फिर इस संस्करण की क्या विशेषता है ? सचित्र आगम प्रकाशन हमने गतवर्ष श्रद्धेय पूज्य गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. के हीरक जयन्ती वर्ष के उपलक्ष्य में सचित्र आगम प्रकाशन का संकल्प किया था । आगमों का सचित्र प्रकाशन अपने आप में एक ऐतिहासिक कार्य है और इसकी अपनी महत्ता भी है । आज प्राचीन हस्तलिखित आगमों में कल्पसूत्र तथा उत्तराध्ययन सूत्र की चित्रमय प्रतियाँ किसी-किसी ज्ञान भण्डार में उपलब्ध हैं, ऐसा सुना जाता है; तथा यह भी सुनने में आता है कि उन चित्रमय आगमों की एक-एक प्रति का मूल्य २०-२५ हजार रुपये से भी अधिक आँका गया है । ऐसे दुर्लभ चित्रित आगम प्राप्त होना तो बड़ी बात है, उनके दर्शन भी अत्यन्त दुर्लभ हैं । फिर भी हर एक आगम जिज्ञासु की भावना होती है कि चित्रमय आगमों के दर्शन हमें भी प्राप्त हों । उनकी उपलब्धि भी हो । - ॥ १२ ॥ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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