Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar Publisher: Padma PrakashanPage 11
________________ औली-जैन सूत्रों में जिन सूत्रों में आत्मा कर्म आदि तात्विक विषयों की प्रधानता है, वे द्रव्यानुयोग कि कहे जाते हैं । जिनमें आचार, समाचारी आदि का वर्णन है, वे आगम चरणानुयोग-प्रधान हैं । जिनमें गणित, लोक, भूगोल, खगोल, नदी, पर्वत आदि का वर्णन है, गणितानुयोग में उनका समावेश हो जाता है तथा जिन आगमों में चरित या कथा-शैली की प्रधानता है, वे कथानुयोग-प्रधान आगम माने गये ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अनुत्तरौपपातिकदशा, विपाक, निरयावलिका तथा अन्तकृदशा सूत्र आदि कथा या चरित्र-प्रधान आगम होने से इनकी गणना कथानुयोग में की जाती है । घर्ण्य-विषय-प्रस्तुत आगम में नब्बे (९०) साधक आत्माओं की साधना का रोचक वर्णन है । सामान्य रूप में यह तपःप्रधान आगम माना जाता है, परन्तु सम्पूर्ण आगम के विषय पर चिन्तन करने से तप, ध्यान, ज्ञानार्जन, क्षमा आदि सभी को मोक्ष मार्ग मानते हुए सबका समन्वय है। इसमें • गौतमकुमार आदि १८ मुनियों ने १२ भिक्षु प्रतिमा तथा गुणरत्नसंवत्सर तप करके मुक्ति प्राप्त की। • अनीकसेनकुमार आदि १४ मुनि १४ पूर्व का ज्ञान प्राप्त कर बेले-बेले के सामान्य तप द्वारा ही कर्मक्षय कर मुक्ति के अधिकारी बने हैं । • अर्जुनमाली जैसे साधक सिर्फ छह महीने तक बेले-बेले तप करके, उत्कृष्ट उपशम भाव-क्षमा-सहिष्णुता-तितिक्षा की आराधना द्वारा सिद्धगति प्राप्त करते हैं । अतिमुक्तकुमार जैसे बाल ऋषि ज्ञानार्जन करके गुणरत्नसंवत्सर तप की आराधना करते हुए दीर्घकालीन संयम-पर्याय का पालन कर मोक्ष पधारते हैं । •गजसुकुमाल मुनि बिना शास्त्र पढ़े, सिर्फ एक अहोरात्र की अल्पकालीन संयम-पर्याय में ही परम तितिक्षा भावपूर्वक समता भाव में रमण करते हुए शुक्लध्यान के साथ मोक्ष प्राप्त करते हैं । • नन्दा, काली आदि रानियों ने कठोर तपःसाधना एवं दीर्घकालीन संयम-पर्याय का पालन कर कर्मों का नाश किया है । इस प्रकार तप, संयम, शम, क्षमा, ध्यान आदि मोक्ष के सभी अंगों की सर्वांग साधना का सुन्दर समन्वय इस आगम में प्राप्त होता है । प्रस्तुत सूत्र का आदर्श इस शास्त्र के परिशीलन से पद-पद पर तप, क्षमा एवं शुद्ध ध्यान की विशेष प्रेरणा स्फुरित होती है । इसके साथ ही कुछ विशिष्ट आदर्श चरित्रों की विशेष प्रेरणाएँ भी हमें जीवन्त आदर्शों की ओर संकेत करती हैं; जैसे १. वासुदेव श्रीकृष्ण के समान धर्म में दृढ़ विश्वास और गुणों के आदर की भावना तथा धर्म सहायक बनने की उदात्त वृत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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