Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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भगवान् का उपदेश और शंख श्रमणोपासक की निन्दादि न करने की प्रेरणा ११९, भगवान् द्वारा त्रिविध जागरिका-प्ररूपणा १२१, शंख द्वारा क्रोधादिपरिणामविषयक प्रश्न
और भगवान् द्वारा उत्तर १२२, श्रमणोपासकों द्वारा शंखश्रावक से क्षमायाचना, स्वगृहगमन
१२४, शंख की मुक्ति के विषय में गौतम का प्रश्न, भगवान् का उत्तर १२४. द्वितीय उद्देशक : जयन्ती (श्रमणोपासिका)
१२६ जयन्ती श्रमणोपासिका और तत्संबंधित व्यक्तियों का परिचय १२६, जयन्ती श्रमणोपासिका उदयननप-मृगावती देवी सहित सपरिवार भगवान् की सेवा में १२७, कर्मगुरुत्व-लघुत्व सम्बन्धी जयन्तीप्रश्न और भगवत्समाधान १३१, भवसिद्धिक जीवों के विषय में परिचर्चा १३१, सुप्तत्व-जागृतत्व, सबलत्व-दुर्बलत्व एवं दक्षत्व-आलसित्व के साधुताविषयक प्रश्नोत्तर १३४, इन्द्रियवशार्त जीवों का बन्धादि दुष्परिणम १३९, जयन्ती द्वारा प्रव्रज्याग्रहण
और सिद्धि गमन १३७. तृतीय उद्देशक : पृथ्वी
सात नरक-पृथ्वियाँ-नाम-गोत्रादिवर्णन १३९. चतुर्थ उद्देशक : पुद्गल
१४० दो परमाणु-पुद्गलों का संयोग-विभाग-निरूपण १४०, तीन परमाणु-पुद्गलों का संयोगविभाग-निरूपण १४०, चार परमाणु-पुद्गलों का संयोग-विभागनिरूपण १४१, पांच परमाणु-पुद्गलों का संयोग-विभाग-निरूपण १४१, छह परमाणु-पुद्गलों का संयोगविभाग-निरूपण १४२, सात परमाणु-पुद्गलों का संयोग-विभाग-निरूपण १४३, आठ परमाणु-पुद्गलों का संयोग-विभाग-निरूण १४८, संख्यात परमाणु-पुद्गलों का संयोगविभाग-निरूपण १५३, असंख्यात परमाणु-पुद्गलों के संयोग-विभाग-निष्पन्न भंगनिरूपण अनन्त परमाणु-पुद्गलों के संयोग-विभाग-निष्पन्न भंग-प्ररूपणा १५५, परमाणुपुद्गलों का पुद्गलपरिवर्त और उसके प्रकार १५७, एकत्वदृष्टि से चौवीस दण्डकों में चौवीस दण्डकवर्ती जीवत्व के रूप में अतीतादि सप्तविध पुद्गलपरिवर्त्त प्ररूपणा १६२, सप्तविध पुद्गल परिवर्तों का निर्वर्तनाकाल-निरूपण १६९, सप्तविध पुद्गल परिवत्र्तों के
निष्पत्तिकाल का अल्पबहुत्व १७०, सप्तविध पुद्गलपरिवर्तों का अल्पबहुत्व १७१. . पंचम उद्देशक : अतिपात
१७२ प्राणातिपात आदि अठारह पापस्थानों में वर्ण-गंध-रस-स्पर्श-प्ररूपणा १७२, अठारह पापस्थान-विरमण में वर्णादि का अभाव १७५, चार बुद्धि, अवग्रहादि चार, उत्थानादि पांच के विषय में वर्णादिप्ररूपणा १७६, अवकाशान्तर, तनुवात-घनवात-घनोदधि, पृथ्वी आदि के विषय में वर्णादिप्ररूपणा १७७, चौवीस दण्डकों में वर्णादिप्ररूपणा १७९, धर्मास्तिकाय से लेकर अद्धाकाल तक में वर्णादिप्ररूपणा १८०, गर्भ में आगमन के समय
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