Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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षष्ठ उद्देशकः पद्म (जीवसम्बन्धी)
पद्म के जीव का समग्र वर्णन २९ सप्तम उद्देशक : कर्णिका-जीव वर्णन
कर्णिका-एक वनस्पतिविशेष ३० अष्टम उद्देशक : नलिन जीव सम्बन्धी
प्रायः एक समान आठ उद्देशक ३१ नौवाँ उद्देशक : शिव राजर्षि
शिव ३२, शिवराजा का दिक्प्रोक्षिक-तापस-प्रव्रज्या-ग्रहण ३३, दिक्-चक्रवाल तप:कर्म का लक्षण ३५, शिवकुमार का राज्याभिषेक और आशीर्वचन ३५, शिवराजर्षि का दीक्षा-ग्रहण ३७, दिशाप्रोक्षणतापसचर्या का वर्णन ३८, शिवराजर्षि द्वारा चार छट्ठखमण द्वारा दिशाप्रोक्षण ४०, विभंगज्ञान प्राप्त होने पर राजर्षि का अतिशयज्ञान का दावा और जनवितर्क ४०, भगवान् द्वारा असंख्यात द्वीप-समुद्रप्ररूपणा ४२, गौतम स्वामी द्वारा . शिवराजर्षि को उत्पन्न ज्ञान का भगवान् से निर्णय ४३, द्वीप-समुद्रगत वर्णादि की परस्परसम्बद्धता ४४, भगवान् का निर्णय सुनकर जनता द्वारा सत्यप्रचार ४५, शिवराजर्षि के विभंगज्ञान के नाश का कारण ४६, शिवराजर्षि द्वारा निर्ग्रन्थप्रव्रज्याग्रहण और सिद्धिप्राप्ति
४६, सिद्ध होने वाले जीवों का संहननादिनिरूपण ४८. दसवाँ उद्देशक : लोक
लोक और उसके मुख्य प्रकार ५०, द्रव्यलोक ५०, क्षेत्रलोक ५०, काल-लोक ५०, भावलोक ५०, त्रिविध क्षेत्रलोक-प्ररूपणा ५१, लोक और अलोक के संस्थान की प्ररूपणा ५१, अधोलोकादि में जीव-अजीवादि की प्ररूपणा ५३, अधोलोकादि के एक प्रदेश में जीवादि की प्ररूपणा ५५, त्रिविध क्षेत्रलोक-अलोक में द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा से जीवाजीव-द्रव्य ५३, लोक की विशालता की प्ररूपणा ५८, अलोक की विशालता का निरूपण ६०, आकाशप्रदेश पर परस्पर सम्बद्ध जीवों का निराबाध अवस्थान ६१, नर्तकी के दृष्टान्त से जीवों के आत्मप्रदेशों की निराबाध सम्बद्धता ६३, बत्तीस प्रकार के नाट्य की व्याख्या ६३, एक आकाशप्रदेश में जघन्य-उत्कृष्ट जीवप्रदेशों एवं
सर्वजीवों का अल्प-बहत्व ६३. ग्यारहवाँ उद्देशक : काल
काल और उसके चार प्रकार ६५, प्रमाणकालप्ररूपणा ६५, उत्कृष्ट दिन और रात्रि कब? ६७, समान दिवस-रात्रि ६८, जघन्य दिवस और रात्रि ६८, यथायुर्निर्वृत्तिकाल प्ररूपणा ६८, मरण-काल-प्ररूपणा ६८, अद्धाकाल-प्ररूपणा ६९, पल्योपम सागरोपम का प्रयोजन ७०, उपमाकालः स्वरूप और प्रयोजन ७०, नैरयिक आदि समस्त संसारी जीवों की
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