Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 16
________________ ७०, स्थिति की प्ररूपणा ७०, पल्योपम - सागरोपम - क्षयोपचयसिद्धि हेतु दृष्टान्तपूर्वक प्ररूपणा पल्योपम-सागरोपम के क्षय-अपचय की सिद्धि के लिए सुदर्शन श्रेष्ठी की कथा ७०, प्रभावती का वासगृह - शय्या - सिंह - स्वप्नदर्शन ७१, रानी द्वारा स्वप्ननिवेदन तथा स्वप्नफलकथनविनति ७४, प्रभावती द्वारा स्वप्नफल स्वीकार और स्वप्नजागरिका ७६, टुम्बिक पुरुषों द्वारा उपस्थानशाला की सफाई और सिंहासन - स्थापन ७७, बल राजा द्वारा स्वप्नपाठक आमंत्रित ७८, स्वप्नपाठकों से स्वप्न-कथन और उनके द्वारा समाधान ८०, विमान और भवन ८२, राजा द्वारा स्वप्नपाठक सत्कृत एवं रानी को स्वप्नफल सुना कर प्रोत्साहन ८२, स्वप्नफल श्रवणान्तर प्रभावती द्वारा यत्नपूर्वक गर्भरक्षण ८३, पुत्रजन्म, दासियों द्वारा बधाई और राजा द्वारा उन्हें प्रीतिदान ८५, पुत्रजन्म महोत्सव एवं नामकरण का वर्णन ८६, महाबल का पंच धात्रियों द्वारा पालन एवं तारुण्यभाव ८८, बल राजा द्वारा राजकुमार के लिए प्रासादनिर्माण ९०, आठ कन्याओं के साथ विवाह ८९, नववधुओं को प्रीतिदान ९१, धर्मघोष अनगार का पदार्पण, परिषद् द्वारा पर्युपासना ९३, महाबल द्वारा प्रव्रज्याग्रहण ९४, महाबल अनगार का अध्ययन, तपश्चरण, समाधिमरण एवं स्वर्गगमन ९५, पूर्वभव का रहस्य खोलकर पल्योपमादि के क्षय - उपचय की सिद्धि ९६. बारहवाँ उद्देशक : आलभिका नगरी (में प्ररूपणा ) आलभिका नगरी में श्रमणोपासकों की देवस्थितिविषयक जिज्ञासा एवं ऋषिभद्र के उत्तर प्रति श्रद्धा ९९, भगवान् द्वारा समाधान से सन्तुष्ट श्रमणोपासकों द्वारा ऋषिभद्र से क्षमायाचना १००, ऋषिभद्र के भविष्य के सम्बन्ध में कथन १०२. मुद्गल परिव्राजक १०४, विभंगज्ञानी मुद्गल द्वारा अतिशय ज्ञान की घोषणा और जनप्रतिक्रिया १०४, भगवान् द्वारा सत्यासत्य का निर्णय १०५, मुद्गल परिव्राजक द्वारा निर्ग्रन्थप्रव्रज्याग्रहण एवं सिद्धिप्राप्ति १०६. बारहवाँ शतक प्राथमिक उद्देशक- परिचय १०८, दश उद्देशकों के नाम ११०. प्रथम उद्देशक : शंख ( और पुष्कली श्रमणोपासक ) शंख और पुष्कली का संक्षिप्त परिचय ११०, भगवान् का श्रावस्ती में पदार्पण, श्रमणोपासकों द्वारा धर्मकथाश्रवण १११, शंख श्रमणोपासक द्वारा पाक्षिक पौषधार्थ श्रमणोपासकों को भोजन तैयार कराने का निर्देश ११२, शंख श्रमणोपासक द्वारा आहारत्यागपूर्वक पौषध का अनुपालन ११३, आहार तैयार कराने के बाद शंख को बुलाने के लिए पुष्कली का गमन ११५, गृहागत पुष्कली के प्रति शंखपत्नी द्वारा स्वागत - शिष्टाचार और प्रश्नोत्तर ११६, पौषधशाला में स्थित शंख को पुष्कली द्वारा आहार करते हुए पौषध का आमंत्रण और उसके द्वारा अस्वीकार ११६, पुष्कली कथित वृतान्त सुनकर श्रावकों द्वारा खातेपीते पौषधानुपालन ११७, शंख एवं अन्य श्रमणोपासक भगवान् की सेवा में ११८, [१३] ९९ ११०

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