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आगम का महत्त्व भारतीय साहित्याकाश में जैनागम प्रखरता के साथ आदित्य की तरह दैदीप्यमान है। वैदिक परम्परा में जो स्थान वेदों का है, बौद्ध परम्परा में जो स्थान त्रिपिटक का है, पारसी धर्म में जो स्थान उवेस्ता का है, ईसाई धर्म में जो स्थान बाईबिल का है, जैन परम्परा में वही स्थान आगमों का है। वेदों में एकान्तवासी संन्यस्त ऋषिमुनियों के विचारों का संकलन है, तो त्रिपिटक महात्मा बुद्ध की करुणा का प्रतिबिम्ब है। आगमों में तीर्थंकर परमात्मा की परम निर्मल और निर्दोष मनीषा अविरल छलकती है। प्रश्नव्याकरण में कहा है -
'सव्व जगजीव रक्खणदयट्ठयाए पावयणं भगवया सुकहियं'
संसार के चराचर समस्त जीवों की रक्षा तथा कल्याण के लिये भगवान् द्वारा प्रवचन दिया गया।
आगम के पर्यायावाची शब्द आगम शब्द के सार्थक अनेक पर्यायवाची शब्द उपलब्ध होते हैं। इन सभी शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं, पर ये सभी अर्थ आगमों के साथ सटीक लागू होते हैं। जैन शास्त्रों को श्रुत, सुत्त या आगम कहा जाता है। यद्यपि वर्तमान में आगम शब्द अधिक प्रयोग में आने लगा है, परन्तु प्राचीनकाल में श्रुत शब्द का अधिक उपयोग हुआ है। श्रुतकेवली, श्रुतस्थविर' आदि शब्दों का प्रयोग आगमों में बहुतायत से हुआ है, परन्तु आगम केवली या आगम स्थविर शब्द उपलब्ध नहीं होता।
सूत्र, ग्रन्थ, सिद्धान्त, प्रवचन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापन, आगम,' आप्त वचन, एतिह्य, आम्नाय, जिनवचन ये सारे आगम के ही पयार्यवाची शब्द हैं।
श्रुत का शाब्दिक अर्थ है- सुना हुआ अर्थात् तीर्थंकरों से सुना हुआ ज्ञान 'श्रुतज्ञान' कहलाता है। चूँकि यह ज्ञान गुरु परम्परा से सुनकर ही क्रमश: चलता था इसलिये भी 'श्रुत' या 'सुय' कहलाता था। संस्कृत व्याकरण शास्त्रियों ने इसी को सूत्र रूप दे दिया।
आगम शब्द की व्युत्पत्ति एवं परिभाषा आङ् उपसर्ग पूर्वक गम्तृगतौ धातु से घञ् प्रत्यय लगने पर आगम शब्द
जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन / 41
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