Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Bhaiji Prakashan

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Page 379
________________ सन्दर्भ एवं टिप्पणी जैन साहित्य का बृहद इतिहास भाग - 1, भूमिका - पृ. 39 इसिभासियाई, अध्याय - 20 विशेषावश्यक भाष्य, गाथा - 1549-2024 आचारांग सूत्र - 1, 1/1/3 एवमेगेसिं जंणातं भवति - अत्थि में आया उववाइए। से आयावादी लोयावादी कम्मावादी किरियावादी॥ उत्तराध्ययन सूत्र - 14/18 जहा य अग्गी अरणी उऽसन्तो खीरे घयं तेल्ल महातिलेसु। एमेव जाया सरीरंसी सत्ता समुच्छइ नासई नावचिठे। इसिभसियाई, अध्ययन - 20 वही वही वही दीघनिकाय, नव नालन्दा विहार, नालन्दा, पयासी सुत्त। राजप्रश्नीय (मधुकर मुनि) भूमिका पृ. 18 (अ) डॉ. सागरमल जैन, अभिनन्दन ग्रन्थ पृ. - 217 से 223 (ब) जैन आगम साहित्य, मनन और मीमांसा पृ. - 206 से 215 12. 2- नियतिवाद का अन्य आगमों में प्रस्तुतीकरण सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित नियतिवाद का उल्लेख संक्षेप अथवा विस्तार से, नामोल्लेख पूर्वक या नामरहित अन्य अनेक आगम ग्रन्थों में उपलब्ध है। सूत्रकृतांग में नियतिवाद के प्रस्तोता के रूप में गोशालक का कही भी नाम नहीं है परन्तु भगवती सूत्र के पन्द्रहवें शतक में एवं उपासक दशा के छठे तथा सातवें अध्ययन में आजीवक मत प्रवर्तक नियतिवादी गोशालक के सिद्धान्तों का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसी प्रकार स्थानांग, समवायांग तथा औपपातिक में भी सामान्य रूप से इसका उल्लेख हुआ है। भगवान महावीर के समय में यह बहुत प्रसिद्ध और शक्तिशाली श्रमण सम्प्रदाय था। गोशालक के लिये मंखलिपुत्र एवं मक्खलिपुत्र इन दोनों शब्दों का प्रयोग होता रहा है। जैन शास्त्रों में मंखलिपुत्र शब्द प्रचलित है, जबकि बौद्ध परम्परा में मक्खलिपुत्र शब्द का प्रयोग हुआ है। हाथ में चित्रपट लेकर उनके द्वारा लोगों सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का तुलनात्मक अध्ययन / 373 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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