Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Bhaiji Prakashan

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Page 412
________________ से भरी क्यों बनायेगा ? क्या हमारा श्रद्धा केन्द्र ईश्वर इतना क्रूर है कि वह नरक और तिर्यञ्च जैसी क्रूर गतियों का निर्माण करेगा ? ईश्वरवादी दर्शन इसके जवाब में कहते है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने ही बाँधे शुभाशुभ कर्मों के परिणामों को भोगता है। तब उनसे सहज ही पूछने का मन हो आता है कि वे कर्म कहाँ से आते है ? जिस समय ब्रह्मा सृष्टि बनाते है, उस समय क्या वे सकर्मजीव बनाते है या अकर्म ? __नि:सन्देह इस सृष्टि की उत्पत्ति अगर किसी व्यक्ति द्वारा मानी जाय तो विभिन्न समस्याएँ खड़ी हो जायेगी। जैन दर्शन इन समस्त समस्याओं का समाधान एक ही वाक्य में करता है और वह वाक्य है- कि सृष्टि अनादि-अनन्त और परिवर्तनशील है। इसका कोई कर्ता, हर्ता या नियन्ता नहीं है। अवतारवाद के अनुसार मोक्ष में जाने के पश्चात् भी राग-द्वेष के कारण आत्मा पुन: संसार में आ सकता है। निश्चित ही यह मान्यता किसी भी अपेक्षा से व्यवहारिक नहीं हो सकती। कोई भी आत्मा एक बार शुद्ध होने के बाद पुन: अशुद्ध कैसे हो सकती है ? अगर पुन: अशुद्ध होने की सम्भावना रहे तो कोई भी क्यों शुद्ध होने का प्रयास करेगा ? जैन दर्शन इस सम्बन्ध में बहुत ही व्यवहारिक तर्क प्रस्तुत करता है -जैसे बीज जलने के बाद उसमें से पेड़ होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है, उसी प्रकार कर्मबीज के जल जाने पर संसार में आगमन भी समाप्त हो जाता है। जहाँ से लौटकर नहीं आया जा सकता, उसे ही तो सिद्धि गति कहते है। गीता में श्रीकृष्ण इसी बात को कहते है - _ 'यद् गत्त्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।' जहाँ से लौटकर नहीं आया जाता, वही मेरा परम धाम है। सूक्ष्म भी अगर राग-द्वेष का बीज विद्यमान रहे तो उसके विस्तार की कल्पना की जा सकती है। यहाँ तो एक अंश भी राग-द्वेष रूप कारण नहीं है, फिर पुनर्जन्म रूप कार्य कैसे सम्भव हो सकता है ? __ अवतारवाद की इस मिथ्या धारणा के पीछे क्या कारण थे और इसकी कल्पना क्यों की गयी ? इसे प्रस्तुत सूत्र में कहीं स्पष्ट नहीं किया गया है। सूत्रकृतांग में कुशील मोक्षवादियों की विभिन्न मान्यताओं के साथ उनका खण्डन भी प्रस्तुत किया गया है। क्या यह सम्भव है कि स्नान से या होम से, नमक त्याग से या सेवन से मोक्ष मिले ? परमात्मा महावीर तो सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव की हिंसा को भी आत्मा के पतन का कारण मानते है, तो वहाँ माँस406 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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