Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Bhaiji Prakashan

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Page 384
________________ पुत्र गोशालक है, जिसे महावीर ने दीक्षित किया था । वह उन्हीं का शिष्य है। उसने शिष्यों को निर्देश दिया कि उसके मरने पर बायें पैर को मूंज की रस्सी से बाँधे एवं मुँह पर तीन बार थूकें और लोगों में यह घोषणा करें कि यह गोशालक वास्तविक जिन नहीं है अपितु श्रमणों का घातक और पाखण्डी है। इस प्रकार विडम्बना पूर्वक शव का निहरण करें। स्थविरों ने उसके आदेश का औपचारिक पालन ही किया । इसके पश्चात् भगवान के शरीर में पित्तज्वर का भयंकर प्रकोप हुआ, जिससे सारे शरीर में दाह और रक्तयुक्त दस्तें होने लगी । जनता में इस प्रकार की बातें फैलने लगी कि मंखली गोशालक की तेजोलेश्या से ही यह व्याधि उत्पन्न हुई है, जिससे वे 6 माह में ही मृत्यु को प्राप्त हो जायेंगे। यह लोकोपवाद सुनकर सिंह अणगार विह्वल हो उठा। भगवान ने उसे अपने पास बुलाकर उसके मन का समाधान किया तथा रेवती गाथा पत्नी के यहाँ से बिजोरा पाक लाने का आदेश दिया। सिंह अणगार ने हर्षित होकर आदेश का पालन किया । बिजोरापाक के सेवन से परमात्मा का महापीड़ाकारी रोग शान्त हो गया । भगवान के आरोग्य लाभ से चतुर्विध संघ तथा देवलोक आनन्द से पुलकित हो उठा। यहाँ एक बिन्दु विशेष विमर्शणीय है - चूँकि रेवती ने कोहलापाक भगवान के लिये बनाया था, अतः भगवान ने उस ओद्देशिक आहार को लाने का निषेध किया था, जब कि बिजौरा पाक अपने घर के लिये निर्मित होने से वह आहार ग्रहण योग्य था । 2 शतक के उपसंहार में इन्द्रभूति गौतम के प्रश्न के उत्तर में भगवान ने गोशालक के भावी जन्मों की झाँकी बतलाकर सभी योनियों और गतियों में अनेक बार भ्रमण करते हुये क्रमश: आराधक बनकर महाविदेह में दृढ़प्रतिज्ञ केवली होकर सिद्ध-बुद्ध होने का कथन किया। एक प्रकार से इस शतक में गोशालक के जीवन के आरोह-अवरोह द्वारा कर्म सिद्धान्त की सत्यता का प्ररूपण है । उपाशक दशांग के छठे कुण्डकोलिय अध्ययन में गोशालक एवं उसके मत नियतिवाद का निरूपण इस प्रकार हुआ है। कम्पिलपुर नगर में कुण्डकोलिक नामक गाथापति रहता था। प्रसंगवशात् भगवान महावीर उस नगर में पधारे। उसने धर्म देशना सुनी और श्रावक धर्म अंगीकार किया। उन व्रतों का पालन करता हुआ वह उत्तम गृहस्थ जीवन जीने लगा। एक दिन दोपहर में धर्मोपासना के भाव से अशोक 378 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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