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है।
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8.
सदा पांच समितियों से युक्त होकर रहें । पंचमहाव्रत रुप पांच संवर से संवृत्त रहें । गृहपाशबद्ध गृहस्थों में आसक्त न हो । 10. मोक्ष प्राप्ति पर्यन्त संयम में उद्यम करें ।
9.
सन्दर्भ एवं टिप्पणी
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(क) पाइअसद्दमहण्णवो पृ. (ख) शब्दरत्नमहोदधि - पृ.
(ग) अभिधान राजेन्द्रकोष
(घ) जैनेन्द्र सिद्धान्तकोष सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा (अ) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. (च) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - सूत्रकृतांग चूर्णि पृ.
- 19
वही
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866
2009 भाग-7, पृ. 417
भाग - 4, पृ. 328
29
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सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 11
(अ) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 30-32 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 11 - 12
19-20
10-11
2. वैतालीय अध्ययन
सूत्रकृतांग सूत्र के (प्र. श्रु.) द्वितीय अध्ययन का नाम 'वैतालीय' या 'वैतालिक'
नियुक्तिकार के अनुसार इसका निरूक्तगत नाम 'वैदारिक' तथा छन्दगत नाम 'वैतालीय' है। प्रस्तुत अध्ययन वैतालीय छन्द में रचित होने के कारण इसका नाम वैतालीय है। कर्मों के विदारण का निरूपण होने से इसका दूसरा नाम वैदारिक है।' 'वि' उपसर्गपूर्वक 'दृ' - विदारणे' धातु से क्रियावाचक विदारण (नष्ट) करने के अर्थ में विदार शब्द बनता है। 'विदारक' यह क्रियापदवाचक नाम है । क्रियापद के सर्वत्र तीन घटक होते है- कर्ता, करण तथा कर्म । इसके आधार पर विदार के तीन घटक बनते है -
1.
विदारक - काष्ठ विदारण करने वाला । 2. विदारण काष्ठ विदारण का साधन ।
108 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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