Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Bhaiji Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 365
________________ है । वे दूसरों के नेता है । वे स्वयंबुद्ध होने के कारण दूसरों के द्वारा संचालित नहीं है। वे भव का अन्त करने वाले है । जिससे सभी जीव भय खाते है उस हिंसा से उद्विग्न होने के कारण वे स्वयं हिंसा नहीं करते, दूसरों से भी नहीं करवाते । वे धीर पुरुष सदा संयमी और विशिष्ट पराक्रमी होते है, जबकि कुछ पुरुष वाग्वीर होते है; कर्मवीर नहीं । s उपरोक्त तीन सूत्रगाथाओं में सम्यक्रियावाद के सम्बन्ध में पाँच रहस्य प्रस्तुत किये गये है - 1. क्रियावाद के नाम पर पापकर्म करने वाले कर्मक्षय करके मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते । कर्म का सर्वथा क्षय करने हेतु महाप्राज्ञ साधक सावद्य एवं निरवद्य सभी कर्मों के आगमन को रोककर अन्त में सर्वथा अक्रिय (योग रहित) अवस्था में पहुँच जाते है। अर्थात् कथंचित् अक्रियावाद को भी अपनाते है । 2. 3. ऐसे मेधावी साधक लोभमयी क्रियाओं से सर्वथा दूर रहकर यथालाभ सन्तुष्ट होकर पापयुक्त क्रिया नहीं करते । ऐसे मेधावी सम्यग्क्रियावादियों के नेता या तो स्वयंबुद्ध होते है या सर्वज्ञ होते है। उनका कोई नेता नहीं होता। वे लोक के अतीत, अनागत तथा वर्तमान वृत्तान्तों को यथावस्थित रूप से जानते है और संसार के कारणभूत कर्मों का अन्त कर देते है । ऐसे महापुरुष पापकर्मों से घृणा करते हुये प्राणिवध की आशंका से क्रियावाद के नाम पर न तो स्वयं पापकर्म करते है, न दूसरों से करवाते है। वे सदैव पाप कर्म से निवृत्त रहते है । यही उनका ज्ञानयुक्त सम्यक्रियावाद है, जबकि अन्यदर्शनी ज्ञान मात्र से ही वीर बनते है, सम्यक क्रिया से दूर रहते है । " प्रस्तुत श्रुतस्कन्ध के प्रथम समय अध्ययन के द्वितीय उद्देशक में बौद्धों के कर्मोपचय निषेधवाद का एकान्त क्रियावादी के रूप में उल्लेख किया गया है। जबकि बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय के तृतीय भाग विनयपिटक तथा प्रस्तुत समवसरण अध्ययन के 5/6 श्लोक की चूर्णि एवं वृत्ति में भी बौद्ध दर्शन को अक्रियावादियों की कोटि में परिगणित किया गया है, वह अपेक्षा भेद से समझना चाहिये । समवशरण अध्ययन में प्रतिपादित चार वाद तथा 363 मत / 359 4. 5. - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436