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इस प्रकार कीचड़ में फँसकर दु:ख पा रहे है। नहीं, श्वेत कमल को तो मैं पाऊँगा क्योंकि मैं निर्दोष भिक्षाजीवी तथा रूक्ष अर्थात्, कर्म मल से अस्निग्ध, रागद्वेष रहित हूँ। ऐसा कहकर उसने पुष्करिणी में उतरने की बजाय तट पर खड़ेखड़े उस पुण्डरीक कमल को लक्ष्य करके आवाज लगायी...... 'हे उत्तम पुण्डरीक कमल ! तुम मेरे पास आओ। मेरे पास आओ।' ऐसा कहते ही वह पद्मवर पुण्डरीक वहाँ से उड़कर उस भिक्षु के पास आ गया। इसका निगमन करते हुये भगवान कहते है -3
लोक पुष्करिणी है। कर्म जल है। काम भोग कीचड़ है। लोग कमल है। राजा पद्मवर पुण्डरिक है। अन्यतीर्थिक चार दिशाओं से आने वाले पुरुष है। धर्म भिक्षु है। धर्म-तीर्थ तट है।
धर्म-कथा आह्वान है। . ऊपर उठना निर्वाण है। प्रस्तुत अध्ययन में चार पुरुष रूप चार वादों का विस्तार से वर्णन है -
इन चार पुरुषों में प्रथम पुरुष तज्जीव-तच्छरीरवादी है, जिसके प्रवर्तक अजितकेशकम्बल है। इनके अनुसार शरीर और जीव एक है, अभिन्न है। जीव नामक किसी पदार्थ का शरीर से अलग कोई अस्तित्व नहीं है। शरीर के जीने तक ही यह जीव जीता है। शरीर के मर जाने पर यह नहीं जीता। शरीर के मरने पर-लोग इसे जलाने ले जाते है। तथा वहाँ से मृत शरीर को ढोने वाली मंचिका को लेकर अपने घर लौट आते है। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि शरीर से भिन्न जीव नहीं है। इस प्रकार तज्जीव- तच्छरीरवादी नास्तिकवादी है, जो अपने मत को युक्तिसंगत प्रमाणित करने के लिये अनेक तर्क प्रस्तुत करते है। इसका विस्तृत वर्णन तथा समीक्षा हम आगे समस्त वादों के दार्शनिक विश्लेषण में करेंगे।
दूसरा पुरुष पंचमहाभूतवादी पकुधकात्यायन का दार्शनिक पक्ष है। इनके मतानुसार पृथ्वी, अप, अग्नि, वायु तथा आकाश ये पाँच महाभूत ही सब कुछ 176 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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