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गुणोंके ( वक्तुं ) कहनेको (बुद्ध्या) बुद्धिसे ( सुरगुरुप्रतिमः अपि) इन्द्रके समान भी (का) कौन पुरुष ऐसा है, जो (क्षमः)समर्थ हो ? क्योंकि (कल्पान्तकालपवनोद्धतनकचक्र) प्रलयकालकी आंधीसे उछलते है मगर मच्छोंके समूह जिसमे, ऐसे ( अम्वुनिधि) समुद्रको ( भुजाभ्याम् ) भुजाओंसे (तरीतुम् तैरनेको ( को वा) कौन पुरुष ( अलम् ) समर्थ हो सकता है ? कोई भी नहीं।
भावार्थ:-जैसे प्रलयकालके भयानक दुस्तर समुद्रको कोई भुजाओंसे नही तैर सकता है, उसी प्रकार मै भी आपके गुणोंका वर्णन करनेमें असमर्थ हू ॥ ४ ॥
सोऽहं तथापि तवभक्तिवशान्मुनीश __ कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः । प्रीत्यात्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्रं
नाऽभ्येतिकिं निजशिशोः परिपालनार्थम् ॥ मुनिनाथ, मैं उद्यत भयउ जो, विरद पावन गानकों । सो एक तुव पदभक्तिके वश, भूलि निजवलज्ञानकों ॥ ज्यों प्रीतिवश निजबल विचारे,-विन स्ववत्स बचाइवे । अतिदीन हरिनी सिंहके, डरपै न सनमुख जाइवे॥५॥
अन्वयार्थी-(मुनीश ) हे मुनियोंके ईश्वर मै स्तोत्र करनेमें असमर्थ हू, (तथापि ) तो मी (तव भक्तिवशात् )तुम्हारी १ स्तोत्र अथवा स्तुति । २ अपने बच्चेके ।