Book Title: Adinath Stotra arthat Bhaktamar Stotra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 68
________________ ५४ भाषाकारकी प्रार्थना | दोहा । मानतुंग अति तुंग कवि, पुनि तिन भक्ति उतंग | सप्तभंगिवानी गहन, उछरत विविध तरंग ॥ १ ॥ तापै नानार्थमय, देववानि - विस्तार | सब प्रकार यों कठिन अति, जिन-गुन- विरदविचार ॥२॥ विन प्रतिभा व्युत्पत्तिबिन, विन अभ्यास कवित्त | केवल भक्तिवश, 'प्रेमी' करि इकचित्त ॥ ३ ॥ या मैं जो कछु न्यूनता, होवहि मूलविरुद्ध । सो सुधारि पढ़ि हैं सुजन, करि निजभावविशुद्ध ॥४॥ इति शुभम् । समाप्तोऽयं ग्रंथः

Loading...

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69