Book Title: Adinath Stotra arthat Bhaktamar Stotra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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भाषाकारकी प्रार्थना | दोहा । मानतुंग अति तुंग कवि, पुनि तिन भक्ति उतंग | सप्तभंगिवानी गहन, उछरत विविध तरंग ॥ १ ॥ तापै नानार्थमय, देववानि - विस्तार | सब प्रकार यों कठिन अति, जिन-गुन- विरदविचार ॥२॥ विन प्रतिभा व्युत्पत्तिबिन, विन अभ्यास कवित्त | केवल भक्तिवश, 'प्रेमी' करि इकचित्त ॥ ३ ॥
या मैं जो कछु न्यूनता, होवहि मूलविरुद्ध । सो सुधारि पढ़ि हैं सुजन, करि निजभावविशुद्ध ॥४॥
इति शुभम् ।
समाप्तोऽयं ग्रंथः

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