Book Title: Adinath Stotra arthat Bhaktamar Stotra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 67
________________ ५३ ( मया ) मेरे द्वारा ( भक्त्यां) भक्तिपूर्वक ( गुणैः ) आपके अनन्तज्ञानादि गुणोंकर के ( निबद्धां) गूंथी हुई और ( रुचिरवर्णविचित्र पुष्पाम् ) मनोज्ञ अकारादि वर्णोंके यमक श्लेष अनुप्रासा - दिरूप विचित्र फूलोंवाली (तव) तुम्हारी इस (स्तोत्रस्रजं ) स्तोत्ररूपी मालाको (यः) जो पुरुष ( अजस्रं ) सदैव ( कण्ठगतां धत्ते ) कठमें धारण करता है (तं) उस (मानतुङ्ग) मानेसे ऊंचे अर्थात् आदरणीय पुरुषको ( लक्ष्मी: ) राज्य, स्वर्ग, मोक्ष और सत्काव्यरूप लक्ष्मी (अवशा) विवश होकर (समुपैति ) प्राप्त होती है । भावार्थ:- जैसे पुष्पमालाके धारण करनेसे मनुष्यको शोभा ( लक्ष्मी ) प्राप्त होती है, उसी प्रकार इस स्तोत्ररूपी मालाके पहनसे राज्य स्वर्गादि और परंपरासे मोक्षरूप लक्ष्मी प्राप्त होती है । 'अशा' पद देनेका अभिप्राय यह है कि, उस लक्ष्मीको विवश होकर इस स्तोत्रके पठन अध्ययन करनेवाले पुरुषकी सेवा में आना ही पडता है ॥ ४८ ॥ इस स्तोत्रके अन्तमें जो ‘पुष्पमाला' शब्द दिया गया है, सो अभीष्ट शकुनको सूचित करनेवाला है । इस कारण महोत्सव तथा आनन्दका देनेवाला है और लक्ष्मी शब्द मंगलवाची है; इस कारण इस स्तोत्रके पठन श्रवण अध्ययन करनेवालोंका अवश्य ही कल्याण होगा । इति श्रीआदिनाथस्तोत्रं सम्पूर्णम् । १ पुष्पमालाके पक्षमें, भक्तिका अर्थ "विचित्ररचनापूर्वक " होता है । २ पक्ष - गुण अर्थात् सूतकरके । ३ पक्षमें -- सुन्दर रगरगके विचित्र फूलोंवाली । ४ पक्षमें स्तोत्रकर्त्ता श्रीमानतुङ्गसूरिको । ५ मान अर्थात् विवेक करके तुंग अर्थात् ऊंचे ऐसा भी मानतुंगका अर्थ होता है । ५

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