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अन्वयार्थों-हे भगवन् , (स्त्रीणां शतानि) स्त्रियों के सैकड़े अर्थात् सैकड़ों स्त्रियां ( शतशः ) सैकडो (पुत्रान् ) पुत्रोंको (जनयन्ति) जनती है । परन्तु ( अन्या) दूसरी (जननी) माता (त्वदुपमं) तुम्हारे जैसे (सुतं ) पुत्रको (न प्रस्ता ) उत्पन्न नही कर सकती है । सो ठीक ही है । क्यों कि ( सर्वा दिशः) सम्पूर्ण अर्थात् आठों दिशाएँ (भानि) नक्षत्रोंको (दधति) धारण करती है, परन्तु ( स्फुरत्-अंशुजालं) दैदीप्यमान है किरणोंका समूह जिसका, ऐसे ( सहस्ररश्मि ) सूर्यको एक (प्राची दिक् एव ) पूर्व दिशा ही उत्पन्न करती है।
भावार्थ:-जिस प्रकार एक पूर्व दिशा ही सूर्यको उत्पन्ना कर सकती है, उसी प्रकार एक आपकी माता ही ऐसी है, जिसने आप जैसे पुत्रको जन्म दिया ॥ २२ ॥ त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांस
मादित्यवर्णममलं तमसः पुरस्तात् । त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु
नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र पन्थाः२३ हे मुनीश, मुनिजन तुमकहँ नित, परमपुरुष परमानें । अंधकार नाशनके कारन, दिनकर अमल सु जानें ॥
१“पवित्रम्" भी पाठ है। २ सूर्य ।