________________
प्रलय-पवन-प्रेरित-पावकसी, विस्तृत अधिक उतंगा। प्रजुलित उज्वलनभमें जिहिके,अगनित उड़त फुलिंगा। ऐसी प्रवल दवानल जो सब, जगत भस्म करि डारै। सोहू तुव गुनगाननीरसों, शीतलता बिसतारै ॥४०॥
अन्वयार्थी-हे भगवन् , ( कल्पान्तकालपवनोद्धतवह्निकल्पं ) प्रलयकालके पवनसे उत्तेजित हुई अनिके सदृश तथा (उत्स्फुलिङ्गम् ) उड रहे है, ऊपरको फुलिंगे जिससे ऐसी (ज्वलितम् ) जलती हुई ( उज्ज्वलम् ) उज्वल और (अशेष) सम्पूर्ण (विश्वं ) संसारको (जिघत्सुम् इव ) नाश करनेकी मानो जिसकी इच्छा ही है, ऐसी ( सम्मुखं) साम्हने (आपतन्तं ) आती हुई (दावानलं) दावामिको ( त्वन्नामकीर्तनजलं ) आपके नामका कीर्तनरूपी जल (शमयति) शान्त करता है।
भावार्थ:-आपके गुणोंका गान करनेसे वडी भारी दावामि भी भक्तजनोंका कुछ विगाड नहीं कर सकती ॥ ४० ॥
रक्तक्षणं समदकोकिलकण्ठनीलं ___ क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतन्तम् । आक्रामति क्रमयुगेन निरस्तशङ्क
स्त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुंसः॥४१॥ पुस्तकोम "उत्फुलिङ्ग" पाठ मिलता है परन्तु कोषादिकोंसे सकारयुक्त फुलिम शब्द सिद्ध होता है । अत एव "उत्स्फुलिङ्ग" ही पढ़ना ठीक है।