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इस कारण ( त्वम् एव ) तुम ही ( बुद्धः) वुद्धदेव हो, (भुवनत्रयशंकरत्वात् ) तीन - लोकके जीवोंके श अर्थात् सुख वा कल्याणके करनेवाले हो, इस लिये ( त्वं ) तुम ही (शंकरः असि ) शंकर हो और (धीर) हे धीर, (शिवमार्गविधेः) मोक्षमार्गकी रत्नत्रयरूप विधिका (विधानात् ) विधान करनेके कारण तुम ही (धाता असि) विधाता हो । इसी प्रकार ( भगवन् ) हे भगवन् , ( त्वम् एव ) तुम ही ( व्यक्तं ) प्रगटपनेसे अर्थात् उपर्युक्त प्रकारसे पुरुषोंमें उत्तम होनेके कारण ( पुरुषोत्तमः) पुरुषोत्तम वा नारायण ( असि ) हो।
भावार्थ:-बौद्ध लोग जिसे मानते है, वह क्षणिकवादी अर्थात् सम्पूर्ण पदार्थोंको अनित्य माननेवाला बुद्ध नही हो सकता। सच्चे वुद्ध आप है । क्योंकि आपके बुद्धिबोधकी देवोने पूजा की है । शैव लोग जिसे मानते है, वह पृथ्वीका सहार करनेवाला कपाली शंकर (महादेव) नहीं होसकता, क्योंकि शंकर शब्दका अर्थ सुखकर्ता है। और यह गुण आपमें विद्यमान है, इस कारण आप ही सचे शंकर है । रंभाके विलासोंसे जिसका तप नष्ट हो गया था, वह सच्चा धाता (ब्रह्मा) नही, किन्तु आप है । क्योंकि आपने मोक्षमार्गकी विधि संसारको वतलाई है। और इसी प्रकार वैष्णवोंका गोपियोंका चीर हरण करनेवाला तथा परवनितारक्त पुरुष पुरुषोत्तम (विष्णु) नही हो सकता। किन्तु उपर्युक्त गुगोंके कारण आप ही सच्चे पुरुषोत्तम कहलानेके योग्य है ॥२५॥ तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्तिहराय नाथ
तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय।.