Book Title: Adinath Stotra arthat Bhaktamar Stotra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 21
________________ अन्वयार्थी-(अल्पश्रुतं ) थोडा है शास्त्रज्ञान जिसको ऐसे और (श्रुतवतां) शास्त्रके ज्ञाता पुरुषोंके (परिहासधाम ) हँसीके स्थान ऐसे (माम् ) मुझको (त्वद्भक्तिः) तुम्हारी भक्ति (एव) ही ( वलात् ) बलपूर्वक (मुखरीकुरुते) वाचाल करती है। क्योंकि (कोकिला) कोयल (किल ) निश्चयसे (मधी) वसन्त ऋतुमें ( यत् ) जो (मधुरं विरौति) मधुर शब्द करती है, (तत् चारुचूतकलिकानिकरैकहेतुः) सो उसमें सुन्दर आम्रवृक्षोंके मौरका ( मंजरीका ) समूह ही एक कारण है । भावार्थ:-कोयलकी यदि खयं बोलनेकी शक्ति होती, तो वह वसन्त ऋतुके सिवाय दूसरी ऋतुओंमें भी बोलती । परन्तु वह, जब वसंतमें आमोंके मौर आते है, तब ही मीठी वाणी बोलती है । इससे सिद्ध है कि, उसके बोलनेमें एक मौर ही कारण है । इसीप्रकार मुझमें खयं शक्ति नहीं है, परन्तु आपकी भक्ति मुझे स्तोत्र करनेके लिये चंचल करती है। इससे इस स्तोत्रकी रचनामें आपकी भक्ति ही एक कारण है ॥ ६॥ त्वत्संस्तवेन भवसन्ततिसन्निबद्धं __पापं क्षणाक्षयमुपैति शरीरभाजाम् । आक्रान्तलोकमलिनीलमशेषमाशु सूर्यांशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् ॥७॥ जो जगतजीवनके पुरातन, पाप भवभवके जुरे। सो होहिं छय तुव विरद गायें, एक छिनमें औतुरे ॥ १ चैत वैशाख दो महीने वसन्त ऋतुके है। २ शीघ्र । - -

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