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44... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? आकर्षक एवं विस्तृत होता जाता है। इससे आज्ञा चक्र विकसित होने से साधक को दिव्य दृष्टि की भी प्राप्ति होती है। इस प्रकार यह मुद्रा साधक को योग की चरम स्थिति उपलब्ध करवाने में सहायक सिद्ध होती है।
• योगाभ्यासियों का अभिमत है कि यह भगवान रामचन्द्र की सर्वप्रिय मुद्रा थी। भगवान बुद्ध को इसी मुद्रा में पूर्णज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
इस मुद्रा के द्वारा सप्त चक्रों आदि की जागृत अवस्था के सभी परिणाम प्राप्त होते हैं तथा शरीर के प्रभावित अंगों का निदान होता है
चक्र- मूलाधार एवं अनाहत चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं वायु तत्त्व ग्रन्थिप्रजनन एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरुदण्ड, गुर्दे, पाँव, हृदय, फेफड़े, भुजाएँ, रक्त संचरण प्रणाली आदि। 2. वायु मुद्रा
जन साधारण का यह अनुभव है कि व्यक्ति भोजन के बिना कुछ महीने जीवित रह सकता है, पानी के बिना भी कुछ दिन स्वस्थ रह सकता है किन्तु वायु के बिना कुछ मिनट जिंदा रहना मुश्किल है इससे वायु का महत्त्व मापा जा
वायु मुद्रा