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50... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? विधि
इस मुद्रा की सार्थकता के लिए सबसे उत्तम वज्रासन में बैठें। फिर अनामिका अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाकर शेष तीनों अंगुलियों को सीधी रखना पृथ्वी मुद्रा है।
निर्देश- पृथ्वी मुद्रा का प्रयोग वज्रासन में शीघ्र फलदायी बतलाया गया है। विशेष स्थिति में सुखासन एवं अन्य आसनों में भी इसका प्रयोग 24 मिनट से 48 मिनट तक किया जा सकता है। सुपरिणाम
शरीर में पृथ्वी तत्त्व के असंतुलित अथवा पृथ्वी तत्त्व की कमी से शारीरिक दुर्बलता, मानसिक अस्वस्थता, वैचारिक शैथिल्य आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं उस स्थिति में पृथ्वी मुद्रा का प्रयोग उपयोगी सिद्ध होता है।
• इस मुद्रा से दैहिक स्तर पर शरीर में सभी प्रकार के तत्त्वों की वृद्धि होती है। शरीर में सभी तत्त्वों का संतुलन बना रहता है। शरीर बलवान और पुष्ट बनता है। शरीर की कान्ति, शक्ति एवं तेजस्विता बढ़ती है। शरीर एवं मन हल्कापन का अनुभव करता है।
• इसका निरंतर प्रयोग करने से मानसिक स्तर पर शरीर में एक विशिष्ट उल्लास, स्फूर्ति एवं ताजगी का अनुभव होता है। आन्तरिक प्रसन्नता बढ़ती है। विचारों में औदार्य गुण प्रकट होता है।
• इसकी नियमित साधना से तामसिक गुणों का नाश एवं सात्त्विक गुणों का उद्भव होता है। सूक्ष्म तत्त्वों में परिवर्तन, नई दिशा का सूचन तथा अध्यात्म प्रेरणा से लाभान्वित होता है। हृदय में करुणा,दया एवं प्रेम का संचार होता है। व्यक्ति में सहनशीलता और धैर्य गुण बढ़ता जाता है।
• हस्त ज्योतिष के अनुसार अनामिका अंगुली बृहस्पति के स्थान के रूप में मानी गयी है। इस मुद्रा से बृहस्पति ग्रह तुष्टमान होकर बौद्धिक क्षमता और स्मरण शक्ति को विकसित करता है।
• धार्मिक क्रियाओं एवं शक्तिसंचय की दृष्टि से अनामिका अंगुली के अग्रभाग पर प्रेशर पड़ने से विद्युत शक्ति संग्रहित होने लगती है तथा इस अंगुली से तिलक करके शक्ति को प्रवाहित भी किया जाता है। इस तरह अनामिका अंगुली अंगुष्ठ की तरह शक्तिशाली है। यह मुद्रा विटामिन्स की कमी को दूर करने की तथा उदार दृष्टिकोण और धैर्य अभिवृद्धि की सूचक है।