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66... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे?
दूसरी विधि के अनुसार कनिष्ठिा अंगुली को छोड़कर शेष तीनों अंगुलियों के अग्रभाग से अंगूठे के अग्रभाग को हल्का सा दबाव देते हुए स्पर्श करवाना हंसी मुद्रा है।11
तीसरी विधि के अनुसार हथेली बाहर की ओर रहें, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका के अग्रभाग अंगूठे के अग्रभाग से स्पर्श करें तथा तर्जनी अंगुली आकाश की ओर सीधी रहें इस तरह भी हंसी मुद्रा बनती है।
निर्देश- 1. इस मुद्रा हेतु सर्वोत्तम आसन सुखासन अथवा उत्कटासन है। इन्हीं आसनों में से एक का उपयोग करें। 2. इस मुद्रा का अभ्यास प्रारम्भ में आठ मिनट, कुछ अवधि के पश्चात प्रतिदिन एक-एक मिनट बढ़ाते हुए 48 मिनट तक बढ़ा सकते हैं। 3. इसका प्रयोग किसी भी समय किया जा सकता है। सुपरिणाम
• इस मुद्रा में हंस के मुख का आकार बनता है इसलिए इसे हंसी मुद्रा कहते हैं।
• हंसी मुद्रा का निरन्तर अभ्यास करने से हंस के प्रतीक रूप विवेक गुण का जागरण होता है, विवेक का दीपक निर्धम अग्निवत प्रज्वलित रहता है, लौ का प्रकाश निष्पकंप वायु की भाँति बढ़ता रहता है।
• आत्म परिणाम उत्तरोत्तर निर्मल बनते हैं। मन:मस्तिष्क हल्केपन का अनुभव करता है। हर अच्छे कार्यों में पूर्णता प्राप्त होती है। सभी तरह की समस्याओं का अन्त हो जाता है।
• प्रथम हंसी मुद्रा के द्वारा निम्न शक्ति केन्द्रों के विकारों का शमन होता है
चक्र- विशुद्धि एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व अन्थिथायरॉइड, पैराथायरॉइड एवं पिनीयल ग्रंथि केन्द्र- विशुद्धि एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- ऊपरी मस्तिष्क, आँखें, नाक, कान, गला, मुँह, स्वरयंत्र।
• द्वितीय हंसी मुद्रा के द्वारा निम्न शक्ति केन्द्रों से सम्बन्धित सर्व प्रकार के लाभ होते हैं
चक्र- मणिपुर एवं अनाहत चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व ग्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं आनंद केन्द्र