Book Title: Adhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 188
________________ 122... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? अधिकता, रक्त संचय की गड़बड़ी के कारण से होने वाला सिरदर्द दूर होता है। शरीर सम्बन्धी किसी तरह का वायु दोष हो तो समाप्त हो जाता है। पेट जनित विकार शान्त होते हैं जैसे कि कब्ज हो तो मल अन्दर से साफ होता है, पेशाब बंद हो तो शुरू हो जाता है, पेट के अवयवों की क्षमता बढ़ती है। • इस मुद्रा के द्वारा दाँत सम्बन्धी दर्द और विकार भी दूर होते हैं। गुदा के स्नायु निरोग रहते हैं। शरीर का तापमान संतुलित-सुनियोजित रहता है। वात के रोग जो वायु मुद्रा से भी ठीक न हो तो इस मुद्रा से ठीक हो जाते हैं। इस तरह प्रस्तुत मुद्रा से अपान मुद्रा एवं वायु मुद्रा दोनों मुद्राओं के फायदे होते हैं। • इस मुद्रा से सप्त चक्रों आदि का शोधन होने के कारण तत्संबंधी फायदे भी होते हैं चक्र- मणिपुर, स्वाधिष्ठान एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- अग्नि, जल एवं आकाश तत्त्व प्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज, प्रजनन एवं पीयूष ग्रंथि केन्द्रतैजस, स्वास्थ्य एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, निचला मस्तिष्क, स्नायु तंत्र। • एक्युप्रेशर चिकित्सा के अनुसार तर्जनी अंगुली पर दाब पड़ने से मेरुदण्ड के दोष शान्त होते हैं तथा अंगुष्ठ के मूल में तर्जनी का दबाव पड़ने से थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थियों के स्राव नियन्त्रित होते हैं। 32. वयन मुद्रा संस्कृत कोश के मुताबिक वयन का अर्थ है बुनना, बुनने की क्रिया करना। जब हाथ से सिलाई करते हैं अथवा स्वेटर आदि बुनते हैं उस समय हस्तांगुलियों की जो स्थिति रहती है, दर्शाये चित्र में हाथों की स्थिति उसी प्रकार की है इसलिए इस मुद्रा का नाम वयन मुद्रा है। ____ यौगिक परम्परा में प्रयुक्त यह एक महत्त्वपूर्ण मुद्रा है। इस मुद्रा के सम्यक प्रयोग से उच्च रक्तचाप को संतुलित किया जा सकता है। इस मुद्रा के प्रभाव से वायु तत्त्व और आकाश तत्त्व को स्थिर कर सकते हैं। शरीर की रक्त-वाहिकाओं में वायु रक्त के लिए प्रवाहक का कार्य करती है। जब वायु का प्रवाह रक्त वाहिकाओं में बहुत तेज हो जाता है तो धमनियों एवं फेफड़ों में रक्त का दबाव

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