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108... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे?
4. इस मुद्रा की एक विशेषता यह है कि इसे अन्य मुद्राओं के साथ भी निरंतर किया जा सकता है। यह दूसरी मुद्राओं के प्रभाव में वृद्धि ही करती है।
5. प्राण ऊर्जा रूप, शक्तिरूप है। वह इन्द्रिय, मन और भावों के समुचित उपयोग से सात्त्विक बनती है। अन्यथा वह इन्द्रियों को आसक्ति की ओर, मन को विकृति की ओर एवं भावों को निम्न मार्ग की ओर ले जा सकती है। इसलिए प्राण मुद्रा के माध्यम से होने वाली प्राण शक्ति के विकास का संतुलित समायोजन बराबर करते रहना चाहिए। अन्यथा शरीर में बढ़ती हुई प्राण ऊर्जा ऊर्ध्वगमन के स्थान पर अधोगमन की ओर प्रवृत्त हो सकती है। ____ विशेषकर पंच वायु तत्त्व की मुद्राएँ पूर्ण लाभ की प्राप्ति हेतु दोनों हाथों से करें। कारणवशात एक हाथ दूसरे कार्य में प्रवृत्त हो तो एक हाथ से भी मुद्रा की जा सकती है। दोनों हाथों से करने पर मुद्रा का पूर्णत: फायदा होता है। सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से यह मुद्रा एक स्वीच की भाँति कार्य करती है जिसे दबाने पर सम्पूर्ण शरीर में स्फूर्ति पैदा होती है। प्राण मुद्रा से प्राण शक्ति का विकास होता है। प्राण ऊर्जा की कमी से ही व्यक्ति का शरीर व्याधिग्रस्त बनता है। इससे प्राणशक्ति को संग्रहित कर व्यक्ति सदैव स्वस्थ एवं निरोग रह सकता है।
• इस मुद्रा से शरीर में प्राण शक्ति का ऐसा संचरण होता है कि जैसे शरीर का डायनेमो शुरू हो गया हो। शरीर के हर एक अवयव में प्राण के प्रकंपनों का अहसास होता है।
• इस मुद्रा से रक्तवाहिनी नाड़ी में किसी तरह की बाधा हो तो दूर होती है और रक्तसंचार निर्बाध रूप से होने लगता है। शरीर में प्राण ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में हो तो नस या स्नायु के खिंचाव में राहत मिलती है।
• इस मुद्रा से प्रभाव से शरीर के किसी भी अवयव में सूनापन हो तो दूर होता है।
• पेरालेसिस के बाद की स्थिति में जमे हुए रक्त का परिशोधन कर उसका मार्ग प्रशस्त करती है।
• इस मुद्रा के नियमित प्रयोग से नेत्रों से सम्बन्धित समस्याएँ समाप्त होती है। आधुनिक युग टी.वी. और कम्प्यूटर का युग है। आज का अधिकतम समय इस प्रकार के उपकरणों के सामने बैठकर ही व्यतीत होता है। ये साधन