Book Title: Adhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 183
________________ आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...117 यह मुद्रा उदान वायु को समस्थिति में रखते हुए उसके वैषम्य से होने वाले शारीरिक एवं चैतसिक दुष्प्रभावों को निरस्त करने के प्रयोजन से की जाती है। विधि किसी भी आरामदायक ध्यानासन में बैठ जाएं। तदनन्तर अंगूठे के अग्रभाग द्वारा हल्का दबाव देते हुए उसे तर्जनी के अग्रभाग से योजित करें। फिर तर्जनी अंगुली के नखस्थानीय भाग पर मध्यमा अंगुली के अग्रभाग को स्पर्शित करें तथा शेष अनामिका और कनिष्ठिका अंगुलियों को सीधी रखने पर उदान मुद्रा बनती है। निर्देश- इस मुद्रा प्रयोग के लिए आवश्यक नियम एवं सूचनाएँ व्यानवायु के समान ही समझें। सुपरिणाम इस मुद्रा के माध्यम से उदान वायु का मुख्य स्थल कंठ भाग (विशुद्धि केन्द्र) खास तौर से प्रभावित होता है। • मानव शरीर की संरचना के अनुसार इस कंठ प्रदेश पर थायरॉर और पैराथायरॉइड नामक दो प्रन्थियाँ हैं जिनके संतुलित रहने पर स्वर, श्वास नली, गले सम्बन्धी बीमारियों का प्रकोप बढ़ता नहीं है, जबकि असंतुलित होते ही रोगाणु अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देते हैं परिणामतः मानसिक और कायिक रूप से व्यक्ति अशान्त हो जाता है। इस मुद्राभ्यास से थायरॉइड और पेराथायरॉइड ग्रंथियों के स्राव संतुलित होते हैं और तज्जनित तकलीफों से राहत मिलती है। • आध्यात्मिक स्तर पर विशुद्धि केन्द्र विचार और वचन का उद्भव स्थान माना जाता है इसलिए विचार और वचन की शुद्धि होती है। ध्यान के दौरान उदान मुद्रा करने से विशुद्धि और ज्ञान केन्द्र (सहस्रारचक्र) की शक्ति जागृत होने से चेतना ऊर्ध्वगामी बनती है और ध्यान साधना में प्रगति होती है। • इस मुद्रा के द्वारा निम्नोक्त प्रन्थियों आदि से सम्बन्धित भी कई फायदें होते हैं चक्र- मूलाधार एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- अग्नि, पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व प्रन्थि- थायरॉइड एवं पैराथायरॉइड केन्द्र- शक्ति एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, पैर, निचला मस्तिष्क, स्नायु तंत्र।

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