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74... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे?
शंख मुद्रा परम्परा में भी शंख का उपयोग किया जाता रहा है जैसे ट्रिटोन्स विजय ध्वनि के रूप में शंख का प्रयोग करते थे। पश्चिमी परम्परा में इसे लोगोस कहते हैं। ___ अनुभवी ऋषियों के अनुसार शंख या उसकी ध्वनि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है इसीलिए उसे सृष्टि निर्मापक एवं अन्तर्निहित दिव्य ध्वनि का प्रतीक मानते हैं। जिस प्रकार कठपुतली धागे से संबद्ध रहती है उसी प्रकार यह ध्वनि व्यक्ति को परम चेतना से संयुक्त करती है। उसे नाद या शब्द कहते हैं। जब शंख बजाया जाता है तब वह दीर्घ ॐ ध्वनि के समान भेदक हो जाती है यही कारण है कि धार्मिक उत्सवों और शुभ कार्यों में शंखनाद किया जाता है। __सामान्यतया शंख जन्म से निर्वाण तक की यात्रा के प्रत्येक पड़ाव पर मंगल ध्वनि करता रहता है तथा यह ध्वनि शुभ भावधारा के समय अन्तश्चेतना से ही निसृत होती है। हमारे जीवन तंत्र पर बाह्य ध्वनि का भी सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। अदृश्य रूप से विकीर्ण मंगल ध्वनि की तरंगो मात्र से व्यक्ति अनिष्ट का निवारण और इष्ट की उपलब्धि कर सकता है।